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________________ (१६४) मेव पर्वति मिली सुवर्ण, रूप्य, वस्त्र नी वृष्टि निरतर करई, ज ज जोइई तं तं श्राणी । नृपागण मरई वालपणि देवागना लालई। देव सबे टोहिला यलइ, अंगुष्ठि अमृत स चारइ, देव पच धात्री वधारई, बौवनि जं जोइय तं नपाडइ, सहू काज कीघउ, लि दिखाडई, दीक्षा लेता महा महोत्सव करह। ! परमेश्वर तणी स्तुति समाचरइ, केवलि जानि जपनई समवसरण रत्न, सुवर्ण, रुप्य मय प्रकार रचई। अढई गाऊ तीह नोएडा' वध खञ्च । जानु प्रमाण पुष्य प्रकर भरइ, त्रिन्नि छत्र परमेश्वर नइ मत्तकि धग्ड । व्यंतर भारि रूप्यं करइं, अंगुष्ठि अमृत सचारिई । रत्नमय दड चामर ढालई, हर्प लगइ आप न सभालइ । । नव सुवर्ण कमल पाय हेठि सचारड, अष्ट मगलीक नवा अवतार । इन्द्र ध्वजादि ध्वन लहलहइ, धूपवटी परिमल महमहई। हर्ष प्रकर्ष लगइ देव गाजई, असख्ये भव तणा सदेह भाजई । रंभा तिलोत्तमा अप्सरा नाचइ, सविहु न मन पतीजह माचः । चउत्रीश अतिशय, अष्ट महा प्रातिहार्य सहित अढार टोप रहित, ३५ वाणी ना गुण सहित, इम तीर्थकर देव धर्म लगइ सदीव मगलीक महोत्सव अनुभवडं। अनइ दश विध भवन पति निकाय, सोल व्यतर तणा निकाय, पंच ज्योतिषी निकाय, वार देवलोक देव, पंच अनुत्तर विमानं देव ज सपूर्ण सुख अनुभवइ । तेउ धर्म हीज नउ निःकेवल माहत्म्य जाणिव । (१६३ जो.) (३४) वीतराग धर्माराधन देव श्री वीतराग देव प्रणीत धर्म तेउ एकाग्र मने अाराधीइ एहु जिन धर्म दश लक्षणोपेतु, भवार्ण्य वनइ पहलइ परि जाइवा तेतु । सर्व सौख्य दायकु, समस्त जीव लोक नउ नायकु । निर्मलु, पाप प्रति सबलु। विश्व वात्सल्य कर, दारिद्र हरु | त्रैलोक्य छुई श्रार्दार १. नउबड़ा २. घटी।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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