SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६३ ) ( २० ) वणिक वर्णन रिद्धिवन्त पुन्यवत, कपूरे कोरला करे । अद्भुत शृंगार समाचरें, नित नवा अलंकार बावरें। कमल फूल त्रिदश आदरें, हिंडोला खाटनी लीला करें। भोग पुरन्दर होइं फिरे, सकल स्त्री जन लोचन हरें । दृष्टि राधो ठाम विकार न करें, नवा नवा विलास करें। महता भोजन जीमे, खडोखली तणा पाणी नहर । दयावंत चित्तधर, पर उपकार कर । ललित गर्भेश्वर, द्रव्य अर्चनेश्वर ( अविनश्वर ?)। सालिभद्रानुकार, मद मुद्रावतार । निरतर तत्रोल संभरें, पंच प्रकार विषय सुख माणे, अग्यो श्राम्यो न जाणे, दिन प्रति विलास हँसे, एहवा महाजन वर्से । भोग पुरंदर, सौभाग्य सुन्दर । भवादि जलधर, ताबूल सनागर । बोडी वैरागर, माननीय मनोहर । लीला अलवेसर, लीला शालिभद्र, इत्यादि भोग पुरंदर । (२१) श्रेष्ठि जसु बणइ प्रदक्षणावर्त संखु, चिन्तामणि रत्नु। . फरस पाषाण पुरिसउ, कोटि वेधु रसु, कालउ चीत्रउ । चोटीया द्रास, जलतरणि हीरउ, कवडी पोतह, सखिणि पदमिणि । वेड लक्ष्मी निधान कलस आणइ, लाखि दीवउ ज्वला । ध्वज लहलहइ, इसउ पनउतउ सेठि ॥ (२२) सुखी श्रेष्ठि श्रीमंतु, रिद्धिमंतु । काकनि करला करइ । फोफले कग्ग जडावइ । महु पूछी नीमइ । कहि पूछी पहिरइ । ललित गर्भश्वरु । शालिभद्रावतारु ।
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy