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________________ (६७ ) सर्पनाते रपि अनात्म नीताना । प्रदीपा दप्याश्रय विध्वसिना । नदी कूलादपि नीच गामिना । मृत्पात्राप भंगुराणा। हरिद्रा रागा दिपि क्षण विनश्वराणा। उदवा न दृश्यते कुपुरुषाणा । यत: परवादे दश वदन पर टोप निरीक्षणे सहलाक्षः । सद्वृत्त वृत्त हरणे बाहु सहस्रार्जुनो नीचः ।। ६७ (स० १) ॥ २१ अंध-वर्णन (६) रणाध, रोगाध, बुभुक्षाध, तृष्णाघ', लोभाध, कामाध, दप्पांध, मद्याध, क्रोधाध', विद्याध, वित्ताध, अहंकाराध', जात्याध, चित्ताय । पुल्प सर्वथापि न देखई काई । न पश्यति मदोन्मत्त. कामाधो नैव पश्यति । न पश्यति जात्यंधो श्रर्थी दोषा न पश्यति ॥ १।१३६ ( स० १) २२ मुखे संग (७) कुमाणस नउ ससर्ग न कीजइ, वरि व्याघ्र सिंउ, क्रीडा कीजइ । परि सूता सीह' मुखि हाथ घातीयइ, (आ)अजीसाप२ सिउं साई दीजइ । श्रजी हलाहल त्रिप पीजइ, वरि अगिनी ज्वाला लीजइ । वरि वयरि घरि वासउ वसीयइ, वरि चोर साथि वइसीउ । वरि पाताल विवरि पइसीइ, वरि बलतइ दावानलि जईयह । पुण” सर्वथापि मूर्ख साथि न जाईयइ ।। न स्थातव्यं न गंतव्यं, क्षण मप्यसना' सह । पयोपि शुडिनी हस्ते वारुणी त्यभिधीयते ॥ १ वरं पर्वत दुर्गेषु,, भ्रात वनचरैः सह । नतु मूर्ख जन संपर्कः सुरेन्द्र भुवनेष्वपि ।। २८५ ( स. १) १ राना दपि अति लाभ १ कोपाथ • मदाध ३ तृषाधु । (पुन्य विजय जी अपूर्ण प्रति) १ समर्ग • जिसापस्यु 3 वरि ४ वरि यरि ५ पण ५ सती सता ६ वारी -
SR No.010755
Book TitleSabha Shrungar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherNagri Pracharini Sabha Kashi
Publication Year1963
Total Pages413
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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