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(४७ ) दातार माहि कर्ण, धातु माहि सुवर्ण । देव माहि अरिहत, ऋतु माहि वसत । भोगाग माहि नारी, क्रीडाग माहि सारी। धान्य माहि चोक्ष, सुख माहि मोक्ष । नाग माहि धरण, मत्र माहि परमेष्ठि स्मरण । पक्षी माहि हस, भूषण माहि अवतस । शास्त्र गाहि गीता, स्त्री माहि सीता । रूपवत माहि काम, तिम पूर्वोक्त गुणोपेत न्यायवन्त श्री राम ।
२६ सीता प्रधान, सर्व गुण निधान । भर्तारनी भक्त, वर्म नइ विषइ रक्त । राम नइ प्रेमपात्र, सुदर गात्र । शील गुल विभूषित, सर्वथा अदूषित । कमल नेत्र, पुण्यक्षेत्र, । जेहनी मीठी वाणी, सगले जाणी। रूपवन्त माहि वखाणी, घणु स्यू इंद्राणी, पणि जे आगइ आणइपाणी ।
(सू०) __३० दशार्णभद्र सवारी (१) महा गहगहाटि हाटि हाटि गूडी ऊभवी, विविध वदन माल शोमी। विचित्र वर्ण संपूर्ण उल्लोच ताड्या, मनोहर मडप माड्या । गृहि गृहि आरीसानी अोलि' झलकइ, काचन तणी किंकिणी खलकइ । स्यानकि स्थानाक सुवर्णमय पूर्ण कलश श्रेणि चड़ावी । नीसरिणीनी ओलि मडावी, कल्याण झल्लरी तडावी । पचवर्ण पुष्प प्रकर भरी, अविद्ध मौक्तिक चत्रक पूरइ । कृष्णागरु धूपहडी मेल्हियई, रग नइ तर गि रास खेलीयइ। शृगार सार रस गाइयइ, वीणा वशादि वादि वाईयई। पताका फरहरती कीधी, कस्तूरी नी गु हली दीधी। मोती तणा झूवखा झूत्राव्या, माहि पद्मराग पटल लंबाव्या। . केलि ने स्तभि तोरणि तिग तिगाव्या, दुगंध ऊपजता राख्या। मण पगाम कपूर लाख्या। केसर कु कू तणा छड़ा छाबडा नोपना, कमलिनी कमाल सपना । छत्र चामर गहगहइ, केतकी दल परिमल ममहइ । १ उलि २ मण गमे (गते)