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________________ . . .. वीरवाण वीरमदे तिण वार, कहिया निरभावण कथन । पीहचावरण चढियो पहब, जोइयां जैत जुहार ॥ सलषावत सुप्रषाल, सुत सुपहां मेलां सहत । हिंदू देषण हालीयो, लषवेरै ल'काल ॥ २७ उडै रज असमांण, आधो फर छायो अरक । षड़िया अस वीरम षत्री, दिस उतर दइ वांग ।। २८ पंथ वहता प्रवीत, कुडल वीरमदे कमध । ........, परणीया चंदण पहव ॥ २६ ............ । 'निजगोगादे नेमियो, वरदाइ जिणवार ॥ ३०* कुडल. सू कुल भाण, पंथ आतुर षड़ पमंग । पष एकण आयो पहव, जोइसां उतन जवांण ॥ ३१ उछ रंग राग अपार, आण घर घर आरती। कमध जोइयांरै कुटम, वाधावै जिण वार ॥ दलो अनै देपाल, भाषै इम सिषर भषर । श्रा वीरम थारी इला, सलषावत सु प्रषाल ॥ उण दिनरो उपगार, देष अनै दारे दलो । धर लषवेरै तु धणी वीरमदे वडवार ॥ ३४ रिमां देयण षगरेस, सूरा भड लीयां सकज । वीरम तलडाणां वहै, दूसर ज्यु परदेस ॥ ३५ आहेड़े उजवाल, सलषावत रमतां सकज । जद गोगादे जनमियो, सुरण वोरमसु प्रषाल ॥ ३६ * नं० २६ और ३० दूहे मूल पुस्तक में चरण अस्तव्यस्त होने से नहीं बनते ।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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