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________________ . भाभका गजस्थान बहुत प्राचीन काल से ही सुसांस्कृतिक प्रदेश रहा है । इस कथन के प्रमाण में शिल्प-स्थापत्य, संगीत, चित्रकला और साहित्य के हजारों ही उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं। साहित्य में सम्बन्धित देश की आत्मा के दर्शन होते हैं और साहित्य वास्तव में किसी देश की संस्कृति का प्रतीक एवं प्रतिनिधि कहा जा सकता है । राजस्थान भारतीय साहित्य का भण्डार है । राजस्थान में निर्मित साहित्य द्वारा भारतीय संस्कृति का उत्तम और पूर्ण रूपेण चित्रण हुआ है। ___ राजस्थान में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, बृजभाषा और खड़ी बोली आदि में प्रचुर साहित्यिक निर्माण का कार्य हुआ है । अन्य भाषाओं में थोड़ा बहुत साहित्यनिर्माण होते रहने पर भी राजस्थानी भाषा में सर्वोत्कृष्ट साहित्य की रचनाएं प्रस्तुत की गई हैं । राजस्थानी भाषा वास्तव में राजस्थानियों की मातृभाषा है जिससे यह स्वाभाविक ही हुआ है कि इस भाषा में हृदयगत् भावनाओं का सजीव और सरस निरूपण हुआ है । राजस्थानी भाषां का साहित्य गद्य और पद्य दोनों में ही मिलता है । राजस्थानी साहित्य वास्तव में समुद्र की भांति गहन है. जिसमें नाना प्रकार के ग्रन्थ-रत्न छिपे हुए हैं। राजस्थानी भाषा में कई वर्षों से खोज-कार्य होते रहने पर भी कई ग्रन्थ-रत्नों की जानकारी साहित्य-क्षेत्र में नहीं के समान हैं । ऐसे ही ग्रन्थ-रत्नों में “वीरवांण" की गणना भी हो सकती है । "वीरवाण" नामक काव्य ग्रन्थ के अपर नाम "नीसाणी वीरमजीरी," "निसाणी वीरमाणरी", "वीरमाण" और "वीरमायण'' आदि भी कहे जाते । किंतु प्राप्त हस्तलिखित प्रति में "वीरवांण" नाम ही मिलता है इसलिये प्रकाशन में इसका नाम “वीरवाण' ही दिया गया है। इस काव्य-ग्रन्थ के एक से अधिक नाम प्रचलित रहने का प्रधान कारण यही ज्ञात होता है कि इस काव्य को अभी तक प्रकाशन का सुअवसर नहीं मिल सका । ऐसा नहीं कहा जा सकता कि "वीरवाण" के विषय में सम्बन्धित लोगों को जानकारी नहीं रही है । वास्तव में राजस्थान के साहित्य-रसिकों और विद्वानों में "वीरवाण" की चर्चा बराबर रही है, जिसके परिणामस्वरूप इस काव्य के सम्बन्ध में थेड़ी-थोड़ी पत्तियां कई ग्रन्थों में प्राप्त होती हैं किन्तु उनसे काव्य और कर्ता के सम्बन्ध में बहुत ही सीमित जानकारी मिलती है ।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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