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________________ ५६ वीरवाण निस आधी बल नेमीयो, वाजी हाक विकट । रोस न मावै रावतां, घण सिर फुटै घट ॥ १६२ १६३ पांणां किरमर पकडे, रिदे जालंधर रट। रिण तती वारल तळी, लेवणं वीजंळ वट ॥ गोगै वीरम वैर कज, पुरा ही बल हट । अोध विगाडो वरत कट, ईसां पिलंग घरट ।। १६४ ११३ दुझल धन तो पित दलो, नव गढपंत नरेस । उण अंगे तूं उपनी, देउ धिम उदेस । नीसांणी देउ सषीयां साथ ले सज बारै आया। वधावे गोगे कमध गीतां गवराया । वैर पितारो वालीयो भल कीधी भाया। तिलक कीयो इण कारणे लैसुं मन चाया ॥ कहीयो जद गोगे कमध मांगो मुष बाई। सिर दु मारो काट कर विच थाल धराई । ओ सिर धड रहजो अषी पासीस दराई । हैसु पमंग पड़ाहीयो माने दे भाई ।। पवरां मेलं धीरपै पुगल पोहोचाई। पूंगां धड सिर वांटजो भिड वेन भाई ॥ . दहा देऊ दलारी डीकरी, वेठां हुत सवाय । तिलक करे गोगा तणे, हैसु लियो बचाय ॥ ११४ १६६
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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