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________________ वीरवांण ४६ छुटा तीर अचितका धड़ फुटा ढलै ।। चुका वैग पिलांणते उलटा कर चलै ॥ धनंष चढाया पुनीय पुरसांण चौहटी। तन फोडे तरगस गया ज्यूं बीज झपटी ॥ ढह पड़ीयो देपालदे धरलणी चोटी। परगट कीधी पनीये रजपूतां रोटी ।। राठोडां अरु जोइयां कलमा चकरारी । वीरम मदु पोढीया सझ पाग दुधारी ।। च्यार सहस पड सुरमा भुज चिरदां भारी । साषां सारी सोह चढ साषो धर सारी ॥ ६५ दहा अंग वीरमरै अोपीया, घाव एक सो दोय । अंग मदुरै उपरा, गिणती चढे न कोय ।। १४६ नीसांणी जोइया दोड़ा देसरा जुटा सो वारे । ऐ मालक नवकोटदा 'लाषां दळ लारै ।। वीरमसुं जुध वाजन मानव कुण मारै । वीरम दाहक आयगा सो साहिब सारै ।। ६७ दहा विड रहीया रिण षेत बिच, सहंस दोय समराथ। . रहे उजागर चूंड रज, नव कोटी............॥ १४७ नीसांणी . पडीया वीरम पाषती संगः इतरा सुरा। सोलंषी माधो सुभंट पडषेत . सनुरां ।।
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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