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________________ ४.७. - ८७ - वीरवांण मदु तो बिन मारको . कुंण प्रासंग धारै । ऐ राठोहड अाजरा पोरस विन पारै ।। दसा हजारां दोठसी हय दोय हजारै । मत धडको दायु मदु है साहिब सारै ।। राठोड़ां रिण रीठसा दे धीठ अकारें । जल चाढां कुल जोइयाँ कथ रषां लारै ।। वाथ घलां असमांणसुं लज हात अलारै ।। सजै दोऊ दल सांमटा विच घूमर वगी। राठोडां अरु जोइयां असमाण सिलगी। वाहे पग देपालंदे फिर पीछी दगी। जांणक नाचत अपछरा घुमावण लगी। जैतल वाही जोर कर विच मुठां लगी। पोड चहुं जब कपडा पग होय अपगी । पपर रांणी चीर जिम घोसांटण लगी। उतरीया वीरम · कमंध समाध कटाई । भाई भाई भाषीयो पुर ढोल बधाई ।। ढाल लियां हन वाहमै समसेर संभाई । .. पैंसठ अस चढ पाडीया वीरम वरदाई ।। वीरम पाला पेत विच ऊभा अड़ पाई ।। राठोडां अरु जोइयां भेरां घमकारा । बाजी हांक बहादरां हुय वर होकारा ।। भल भल वांड भलकीया पुरसाण दुधारा । झवरक सेला आग झड उर फुट अफारा ।। पडीया असफड पाषती धड न्यारा न्यारा। जाणक आप चोगानमे ढ़लीया विणजारा ।। पालै पनरै पाडीया सज वीरम सारा। उण पुल मोयल रिण भिडा पग झलै पारा ।।.
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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