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________________ ७३ वीरवांण मांगलीयांणी माहरी गायां भिड़कावै । लपवैरैरी सीवमै कुसलै फिर जावै ।। जोइया मनमै जाणसी वीरम संक पावै । हु आलस बैठसुं हमै थित इतरा थावै ।। फणधर छांडै फणदसुं न भार संभावै । अरक पिछम दिस उगवै विधि वेद विलावै ।। विग घटै वीहंगेसको सिव ध्यान भुलावै । गोरष भूलै ग्यांनकुं जत लिछमण जावै ।। सत छाडै सीता सती हणमंत घवरावै । धणीयां धाडेता तणीकी पबरां पावै ।। हुँ सुंक कर बेठु घरे जग उलटो जावै ।। ऐ राठोहड़ आजरा उठीया अवतारी । हड हड नारद हसीयो भैरव ब्रद भारी ।। मांगलीयाणी स्यामनै पालै घण प्यारी। घुड बलोइण ढोलरै लष धो बालारी ॥ उंधी किण दीधी अकल विणतै इधकारी। वाढण वात फरहासकी मुप केण उचारी ।। मेटण राज समाहरी देवण दुष भारी । रांणी पाणी रालीयो आंषां अणपारी ।। वरजे चढतां वीरमो ग्रहचाल पलारी। रह रह ठाकुर समझ मन सुणीये गल मारी ।। जो फरहास न वाढाता टल जाती सारी। सांणी करी समांधकुं तद वैग तयारी ।। पाव रकेबां पर ठकै कीधी असवारी ।। दोय सहंस चढीया दुझल पमंगां पपराळा । . वीरम समांध कुदाडवै. झल साबल झाळा ।। आज न छोडां एक ही विच पेत वडाळा । ७४
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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