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________________ मलिनाथ जगमाल सुतिण किसड़ी तांणी । आप तणी घर छोड़के आयो आपाणी ।। आपां मारण उठीया लप कोट लगांणी । कवि ने अपने आश्रयदाता दला जोया की विशेष प्रशंसा की है सरणायां साधार, ढलै जिसो नह देपीयो। वीरमरा विनपार, जबर गुना जिण जारीयो ।। दला ने राटीड़ों से समझोते का प्रयत्न भी किया दल भेज प्रधान कु ए जाय अपंदे। वीरम तुम गुना करो हम जाय पिमंदे ॥ ढाबो ढाबो ठाकरां धर पाय धरदे । मदु न मानें माहरी कल काहे करंदे ॥ हेकण जगा न मावही दोय सेर बकंदे। हेकण म्यान न मावही दोय पाग धकंदे ॥ तुम हिंदु गुना करो मुप चोलो मंदे। दोय घर डाकण परहरे गाम वणीयां हंदे॥ वीरमजी ने दला को उत्तर भेजते हुए लिखा-. आपै वीरम राठवड़ आगल पलावै । डाकण किरणने परहरै जब भूपी थावे ॥ गुण भूलो सारा दलो परधान मेलावै । आप प्रधान सु अपीयो वीरम वट पावै ॥ सूर उगै साइयांण मै नित ध्राह घलावै । जोयां हंदी नीपका पोसे ने पावै ॥ दले अरु देपाल कु. नित ध्राह सुणावै । वीरम न्याय नह लही अन्याव सुहावै ॥ जोइया बडपण जाणनै कथ नीत करावें । पौसै फेरू पाजलं साफरै रापवे ।। दला के समझौते के प्रयत्न व्यर्थ हुए और वह वीरमजी की अनिति से बहुत दुखी हुश्रा जिसके लिए कहा गया है दोनु तरफारों दलो, दुष.भुगतै निस दीह। . ___ झलीया रहै न जोइया, लोपी वीरम लीह ॥ ' एक दिन वीरमजी ने जोहियों की धरती पर अधिकार कर अपने "दाणी" बैठा दिये नौर १५ जोहियों को भी मार दिया । तब जोहियों ने राठौड़ों पर चढ़ाई कर दी। . .
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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