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________________ वीरवास वेला पडै ति बेला थे पिग्ण मां मु उपगार करज्यो । यो वचन याद रापच्ची । थे परा उटी । वहल जोतरो । थे नीकली । रावजी सृता छ । दोलो गहलोत अायां यां उपरै तरवार वाजसी । तरे. देपाल बहल जोति ने रातो राति नीकल्यौ । इतर दोलो गहलोत पायो । वीरमदेली की दोला वधाई देख्यो । देपाल एकलों यांपार हाथ आयो छ । तर दोले गहलोत को मारीयों कना नही । वीरमदेजी कयो अवै मारिल्यो । तर दोलो घावड्या . साथे लेजाय कुमार घरे खबरि कीनी । अाग देखें तो देपाल नहीं । कुमारनं पूचीयो। ... देपाल कठो गयो । तर कुमार कयौ अठामु तो पोदर १ रात से बहल जोतिनै नीकंल्यो। तिको पवरि काई नहीं । कटी ही गयौ । कोस ५ तथा ७ दोड्या पिण देपाल तो जातो रह्यो । दोडिने पाछा उरा पाया । देपाल तो कुसल घरे पुहतो। अठं वीरमदेनीन दोले गहलोत पिछतायो घणो कीयो जे देपाल घरे आयो कुसले जाय । तरे. मांगलीयांगीजी को रावनी देपाल पापां मुं तो तपरी कीनी थी नै श्राप उणांरी रमिक पायन उगाने हीन मारण तेवडो छौ तिको नारायणनी सांसवै न छ। पछै तो याप जांगो । विगा वीरमदेजी रे मन मनि नही । मन मै मारगरो डाव घणो ही कर छ । हर भांति करिने बोईया मारिनं धरती धाबीजै । इसी वीरमदेनीरा मन में करते है। इतरे होली बाई नै गेहर वाजगा लागी । सुहांणे गढ गेहर वाजे तिको दोन निपट सरवो वा छ । तरे वीरमदेशी काया जो यां टाकुरांरो ढोल बोहत सम्वो वाजै छ । तरै चाकरा कही महारान औयार ढोल यांबारो छ । अांपनी ढोल लोहरो छ। तिको मधुरो चाजै छ । सोहांगी ने कागासर कोस १२ रो अांतरो छ। ठंढी गतिरो ढोल निपट नैड़ो मुग्णीजे । तर वीरमदेजी कम्यो अांपगणे पिण ढोल अावांरो करायां तो प्रायो। तरे कारीगराने बुलाय ने वीरमदेनी करो कटक यांवो वढाय ने ढोल करावो । तेरें कारीगरी अरज कीवी महाराज थलवट में गांव में फरास कठकै लामे । तर दोलै गहलोत कमी जोईयां में मार-गुरो उपाय करो छो तो ग्रांपा हालिने वीर धवल नांमा फरास वाढां ने ढोल करावां ने फरास जोयारे पूजनीक है। तिण उपरा जोईया पापांसु वेढ करंसी तर ग्रांपे देपालनै मारि ने सां । तरै दोलो गतलोत फरास वाढण नै गयौ । तर वीरमदेनीरै बहु मांगलीयांणीनी छतिका निपट समझगी छ । तिकण सुणीयो दोला गहलोतनै वीरमदेजी जोयांरो वीर धवल नामा फरास वाढणने मेलीयो छ । तरै मांगलीयांणीनी वीरमदेनीन कहे । - नीसांगी , उहीज श्रावै रतडी सिर लापै लोवै । .. धोत्री धोकपड़े मोटीयारी - धोवे ॥ चिणेज चवै सार वेप बहंदी होवै । मांगलीयांणीने सांपली . एकायज रोवै ॥ जे फरासन वढीये तो कलिकेथी हो । ....
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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