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________________ मलीनाथ मांगी मुपां, साकुर माले समाध। जकां न दीधी जोहियां, उणसुवधी उपाध ॥ मलीनाथजी ने मधु जोहिया को रुपयों आदि का लालच दिया साथ ही दला ने भी समझाया किन्तु मधु नहीं माना । तब धोखे से जोहियों को मारने की योजना बनी -- मारै लेसु माल, साकुर पण लेसु सरब । जोयां पर जगमाल, रचै मूक उण राव रो ॥ एक बुढ़िया मालिन ने जोहियों को इस "चूक" की सूचना दी जिसका सरस वर्णन इस प्रकार किया गया है:-- मालण नै नितरी मोहर, दलो दिरातो दान । चूक तणी चरचा चली, आई मालण कान || जद उण मालण जाणीयो, दले दियो बहु दान । सीलू उणरो सीलणों, कथ आ घालूकान ॥ डिगती डिगती डोकरी, पूगी दले पास । दला चूक तो पर दुमल, नाज्ञ सके तो नास ॥ तलवाडै थाणा तठे, सावै बंदव सात । वीरा थां पर बाजसी, रुक झड़ी अधरात ।। राठौड़ों द्वारा होने वाली "चूक" का समाचार जान कर दलों ने अपने परिवारों को रवाना कर दिया:-- दलै कविला देस नै, बाहिरज कीधा वेग। साथै वंदव सात ही, तिके उरसरी तेग ।। अब राठौड़ों और जोहियों, दोनों ही दलों की ओर से युद्ध की तैयारी होने लगी। इसी समय दिल्ली बादशाह कुतबद्दीन की सेवा में जाने वाले तीस अशर्फियों के. ऊंटों को . वीरमजी ने लूट लिया: ऊंटो तीसा ऊपरै असरफीयां आवै । सो मेली पतसाह के. जोगणपुर जावै ।।. पैसकसी पतसाहरै पतसाह पुगावै । मिलीया वीरम मारगां अस लीधां आवै ॥. सव मोहरां पतसाहरी लुटे लीवरावै । सांमल हुय सारा सुभट मीया फरमायै ।। ओ धन वीरस आपरै घरमै नह मावै । वीरम औ भख वाघरो पोह केम पड़ावै॥ बादशाही सेना से हुए युद्ध और उसमें राठौड़ों की विजय का वर्णन इस प्रकार किया गया है:--
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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