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________________ arran वप गोगइ तैमै विलकुवियो, सत्र साजण रूक पत्री समरी । कल जाणक नट्ट कुलट्ट करी, घेषे कर वेग गोगैय धरि ॥ तद राणक भागोयो देषय, वियमोह हुतां षंग वैग वुही । हृद जंध उभै निरलंग हुई, ऊभी रह कम भाजै मुभि अग्ग || , सज तालिय तालिय आव सगा, कहरांणक तालिय हास किसो" । जुग की धोय गोय आप जिसो, चक च्यारुय नामीय चंदवडौ ॥ पाडेय पल हड़ षेत पड़े, घर सूंघट गोगाय काप घणो । तेहां जांप जप्यो नव नाथ तरगो, कटिये पग सेवग साद किये ॥ दरसाव इतै सिद्ध राव दियो, सुभरीझ जलंधर पाव सही । जग कीधोय अम्मर आप ज्युं हीं, हुय सिद्ध गोगो हुय ग्राप माँ ॥ इल अंबर सूरज चंद इतै, सज बाग बलां सलषेस दुवो । हद सूर दसमो नाथ हुवो, सुध वायक पाहड़ षान् सही ॥ " कव क्रित उकत पर माणकही लष कोड़ करी अस पुत्र है | रिध सिध सदा अणषुट्ट रहै, मोमुज सात्रव दालद रोग मिटे ॥ पिंड प्राणद जोस कलाय गर्दै, कर धूप प्रभातेय पाठ करें । हुय जैत षगां सत्र दोष हरै, धिन धिन गोगा कनवज्ज धरणी || तैय पुरिय प्रास कविद तरणी, कव प्रीत हुँता तव क्रीत कहै । रिव चंद जितै तोय नांम रहे,, सिषैय गुण भाषेय क्रीत सु ॥ 1
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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