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________________ वीरवाण ऊपड़ रज अणपार, गिधिरण जोगण गह गहै । हळ हले गो गादिसी, सजे छतीसु मार ॥ १२६ छंद त्रीठक वप तेज हळाहळ वाद वहै, सक सूर छतीसुये सार सहै । पैलां पत लैण बळी समथ, हूब होयक हूकळ वीर हथा ॥ ते बेठक भूषाय बाघ तिसा, डाढाळ कठठय गोग दिसा। बोहाळ षड़य अस मोड़ वंधो, कवली भड़ धीरोए नाह कंधो ॥ वप वाहर नाहर, जोम धके, जुध मांहि भिड़े नर जोध जके । दल पायल थाठ हलै दुझल, हुब जाणक सांमद सात हले ।।. डाकिय भुज अंबर धीर डहै, वह पूर विमाण कबा ग्रहै । भुरा मण तीन पुलाब बषै, चढिया षल षावण चोल चषै ।। प्रथमी दस देसांय भंग पड़े, ते भार दलां अहिधुह अतड़े। घण घोर अाडंमर षेह घणी, प्रोपेय जिम नषत्र सेल करणी ॥ काको जुध मांगण गोग कना, मिलाय हुय मारग हेक मना । षिध लागेय बाज घरण षड़िया, अरजीत गेया नही आपड़िया । वप सोच वले. तज मांण वहै, रायठोड़ अगे अध कोस रहै । दल नाथ हलै पंथ देस दिसी, असधीर अफालिया कोस असी॥ वकवाव वधारण वेद भळे, वह पंथ विचारियांम मिले । पुछेय मिल जैनुय वात यहां, सिघ गोग तणो सक साद सहां ॥ सुणतांय मराइके गलही, कर जोड़ हकीकत साच कही। भड़ षोस छला मद गैभरियों, प्रो गोगल छुसिर उतरियो । सूत्रणे अर नेडोय संभलियो, गल चाळण धीर विळकुळियो । भुज पोरस मूछ भुहार भिड़ौ, षेथे चड़ आतुर बाज षड़े ॥
SR No.010752
Book TitleVeervaan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRani Lakshmikumari Chundavat
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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