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________________ ६८ स्मरण कला क्रियाओ की तरह ही प्रकृति की घटनाओं की भी कल्पना करो। जैसे कि-प्रात काल हो रहा है, मध्याह्न तप रहा है, सायकाल हो रहा है, रात्रि पड़ रही है, आधी रात हो गई है, नदी मे पानी चढ रहा है, सरोवर मे लहरें उठ रही हैं, सागर का गर्जन चल रहा है, हवा फुफकार रही है आदि-आदि। किसी असाधारण घटना की कल्पना करने मे भी दक्षता चाहिए । जैसे कि-मोटर, रेल या विमान में अचानक प्रचंड आग, जल-प्रलय, दुष्काल, रोग-सचार आदि-आदि । __कल्पना का विकास अनुभव की विशालता पर निर्भर है। इसलिए अनुभव को बन सके उतना विशाल बनाने की अपेक्षा है। निबन्ध-लेखन, काव्य रचना, निरीक्षण करने की आदत और चित्रकला, उसमे खूब ही शहायक है । मैं मानता हूँ कि कल्पना के विकास के लिए इतने सुझाव काफी है । अब उसकी व्यावहारिक उपयोगिता बता रहा हूँ१. जो व्यक्ति क्रिकेट के खेल मे लगे एकाध सुन्दर फटके का सूक्ष्मता से निरीक्षण करता है और उसे सैकडो बार मन मे देखता है, वह उसे बरावर याद रख सकता है। उससे वह स्वय भी उसी उत्तम रीति से फटका मार सकता है। जो व्यक्ति किसी महान् वक्ता का भाषण बहुत ही रस पूर्वक सुनता है, और उस समय होने वाले तमाम हाव भाव को बडी सुक्ष्मता से देखता है, बार-बार अपनी कल्पना मे उन हावभावो को लाता है। वह उन्ही हावभावो के साथ भाषण कर सकता है। ३ टाइप मे खूब शीघ्रता के इच्छुक व्यक्ति को सबसे पहले की-बोर्ड का मन मे अभ्यास करके, कल्पना के द्वारा वैसा करना चाहिए । ऐसा करने से स्वल्प समय मे हो टाइप करने मे अपूर्व शीघ्रता लाई जा सकती है। ४ गार्ट हैन्ड मे भी यही रीति उपयोगी है। ५ लिपि-सुधार का इच्छुक किसी सुन्दर लिपि को कल्पना द्वारा बार-बार दर्शन करके अपनी लिपि को सर्वश्रेष्ठ बना सकता है।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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