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________________ निस्तरग = सकल्प-विकल्पो की तरगो से रहित । निष्कलक = कर्मकलक-रहित । निरजन = कर्म-रूपी अजन से रहित । अभयदाता = समस्त जीवो को अभयदान देने वाले। दृष्टि-दाता = विवेक रूपी दिव्य दृष्टि के दाता, त्रिभुवन मे सारभूत सम्यग् दृष्टि-आत्मदृष्टि प्रदान करने वाले । मुक्ति-दाता = मुक्ति प्रदान करने वाले । मार्ग-दाता = मोक्ष-मार्ग प्रदान करने वाले । बोधिदाता = आत्म-स्वरूप का बोध देने वाले । शरण-दाता = अशरण जीवो को सच्ची शरण देने वाले । धर्म दाता = धर्म का दान करने वाले । धर्म-देशक = अहिंसा, सयम, तप-रूप धर्म के प्ररूपक । धर्म-नायक = धर्म के स्वामी, धर्म के शासक । धर्म-सारथी = धर्म रूपी रथ के सारथी । हृषिकेश = इन्द्रियो के स्वामी, इन्द्रियो का निग्रह करने वाले, हृषिक - इन्द्रिय, ईश = स्वामी। अज = जिन्हे पुन. जन्म धारण नही करना है वे । अजर = जरा रहित । अजेय = पातर शत्रुओ के द्वारा अथवा त्रिलोक के किसी अन्या बल द्वारा जो । जीते नही जा सकें। अचल = महान् भयानक उपसर्गों से भी विचलित नही होने वाले, शुद्ध स्वभाव मे सदा स्थिर रहने वाले । मिले मन भीतर भगवान १११
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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