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________________ सर्वज्ञ = सर्वकालिक समस्त पदार्थों के समस्त भावो के ज्ञाता। सर्वदर्शी = सर्वकालिक समस्त पदार्थों के समस्त भावो को हाथ की रेखामो के, समान देखने वाले। स्याद्वादी = अनेकान्तवाद के प्ररूपक । सर्वतीर्थोपनिषद = समस्त दर्शनो के रहस्य भूत । सर्वपाखडमोची = समस्त पाखडियो का गर्व चूर करने वाले। सर्वयोगरहस्य = समस्त प्रकार के योगो के रहस्य भूत । सर्वप्रद = मनोवाछित सब पदार्थों को देने वाले । सर्वलब्धिसम्पन्न = समस्त प्रकार की लब्धियो से युक्त । सौम्य = चन्द्र तुल्य सौम्य मुख-मुद्रा वाले। 1 » सर्वगत = केवली समुद्घाती के समय समस्त लोको मे व्याप्त अथवा केवल-ज्ञान द्वारा सर्वत्र व्याप्त । सर्वदेवमय = समस्त प्रकार के देवत्वमय । सर्वध्यानमय = समस्त प्रकार के ध्यान वाले । सर्वज्ञानमय = समस्त प्रकार के ज्ञान वाले । सर्वतेजोमय = समस्त प्रकार के तेज वाले । सर्वमन्त्रमय = समस्त प्रकार के मन्त्र-युक्त । सर्वरहस्य = समस्त प्रकार के रहस्यमय । निरामय = रोग-रहित । निःसग = सग-रहित । निशंक = पूर्ण ज्ञानी होने के कारण शका रहित । निर्भय = सातो प्रकार के भय से रहित । ११० मिले मन भीतर भगवान
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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