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________________ १४ १ स्मरण कला पर मत्रि-मण्डल की रचना मे उसने जरा भी रस नहीं लिया है। इससे उल्टा, एक राज्य कर्मचारी को यदि यह पूछा जाए कि अभी अभी प्रधान मडल मे कितने पार्षद है, और वे कौन से प्रान्तो से आये हुए है तो वह इसका उत्तर बराबर दे सकता है, और वह हरेक सदस्य की वास्तविकता तथा कार्य क्षमता के विषय मे भी जरूर कुछ बता सकता है, परन्तु क्रिकेट मेच के विषय मे वह सम्भवतः उतना सतोषजनक जवाब न दे पाये। यह वस्तुस्थिति हरेक विषय मे समझ लेनी चाहिये। कितनी ही बार इस रस की गाढता एक विषय में इतनी अधिक बढ जाती है कि मनुष्य एक लक्षी बन जाता है । अर्थात् उसको अपने आस-पास होने वाली घटनाओ का या अपने शरीर का भी पूरा भान नही रहता। उदाहरण के तौर पर महान् वैज्ञानिक एडिसन एक बार सरकारी आफिस मे कर (टेक्स) भरने के लिये गये हुए थे । वहाँ वे अपना नाम ही भूल गये । बहुत प्रयत्न करने पर भी याद नहीं पाया । उनकी यह दिक्कत पास मे खडे एक चतुर मनुष्य ने ताड ली। इसलिये उसने उनको नाम पूर्वक सम्बोधन 'किया और तब वैज्ञानिक एडिसन को विस्मय के साथ अपना नाम याद आया । यह स्थिति बनने का कारण यह था कि उनका मन नये-नये आविष्कार और खोज करने मे इतना तल्लीन रहता कि बाकी के समग्र विषयो की तरफ उपेक्षा वृत्ति हो गई थी। ऐसा ही एक उदाहरण महात्मा मस्तराम जी का है। वे वास्तव मे मस्त थे । इसलिये बहुताश मे उनका लक्ष्य आत्माभिमुखता ही रहता था और अन्य विषयो मे उपेक्षा रहती। वे एक बार सौराष्ट्र के एक ग्राम मे किसी भक्त के निमत्रण से उसके वहाँ भोजन करने गये । उस भक्त ने उनको जिमाने के लिये चूरमा बनाया था, परन्तु हुआ यह कि उसने उस दिन एक ओर नमक पीस कर एक थाली मे रख दिया था, उसके पास ही पिसी हई मिश्री की थाली भी पड़ी थी। इसलिए भोजन के साथ चूरमे मे मिलाने के लिए मिश्री वाली थाली के बदले भूल से नमक वाली आ गई । नमक कितना कडुआ होता है यह समझा जा सकता है परन्तु महात्मा मस्तराम जी तो सब वस्तुओ को मिला कर खा गये । खाना खाते समय उनका अन्त:करण प्रसन्न दिखाई पड़ता
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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