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________________ स्मरण कलाई १३९ ग्रन्थांश्चकार जित काश्य बुध प्रकोण्ड. सिद्धावधानकुशलो विवुधाग्रणीर्य ।।१२।। । प्रासीत् महाकविवरश्रु त - गटुलाल: प्राचार्य शङ्कर गुरुश्च । ' शतावधानी । अद्यापि विश्रत - यशा- कविराजचन्द्र ; ख्याति दधाति विदुषा मुनि रत्नचन्द्र. ॥१३॥ ( शतावधान प्रयोग के अवसर पर बीजापुर मे लेखक को समर्पित शतावधानाभिनन्दनम् नाम के बत्तीस श्लोकी काव्य मे से) . " श्री मुनि सुन्दर सूरि सहस्रावधानी के रूप में विख्यात हैं। व्याकरण, न्याय और गणित के विषय मे अत्यन्त निष्णात थे तथा कवियो मे श्रेष्ठ थे । __ महामहोपाध्याय श्री यशोविजय जी महाराज विद्वानो मे सुप्रसिद्ध थे। उन्होने तत्त्वबोध से भरपूर और विविध छन्द-अलकार से बहत कमनीय १०८ ग्रन्थो की रचना की है। उन्होने काशी मे सर्व पण्डितो पर तत्त्व-चर्चा मे विजय पाई थी। वे अवधान के विषय मे अतिशय कुशल थे। इस कारण विद्वान् उनका बहुत सम्मान करते थे। कविवर गटटूलाल जी तथा शकर लाल माहेश्वर भट्ट शतावधानी थे, वैसे ही आज तक भी जिनका यश गूंज रहा है वे कवि राजचन्द्र जी और विद्वानो मे प्रख्यात मुनि रत्नचन्द्र जी भी शतावधानी थे । __मुनि श्री सौभाग्य चन्द्र जी (सन्त बाल), मुनि श्री जयानन्द जी, मुनि श्री धनराज जी स्वामी का नाम भी इस पक्ति मे अकित करने योग्य है। अवधान-प्रयोगो मे कौन से विषय किस पद्धति से ग्रहण करने चाहिये, इसका विवेचन लेखक द्वारा ता० १६-४-३६ के दिन प्रातः काल बम्बई के सुप्रसिद्ध मेट्रो थियेटर मे श्रीमान् पुरुषोत्तमदास शतावधानी पण्डित श्री धीरजलाल शाह जीवन-दर्शन ग्रन्थ मे यह काव्य पूरा छपा है।
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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