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________________ पत्र उगणीसवाँ व्युत्क्रम की साधना प्रिय बन्धु । कम की उपयोगिता सम्बन्धी कुछेक विवेचन मैंने पिछले पत्र मे किया था। उसमे क्रम के महत्व को समझाने का प्रयत्न किया था, परन्तु गब्द और अङ्क ही अधिकतर व्युत्क्रम मे सहब्ध होते हैं और उन्हे उसी प्रकार याद रखना जरूरी होता है। जैसे कि-'राम सीता दोनो जगल मे गये ।' इसमे रा के बाद म, म के बाद सी, सी के बाद ता, इस तरह सभी अक्षर व्युत्क्रम में आये हुए है। इसी प्रकार हिमालय पहाड जगत् के सभी पर्वतों मे सबसे बड़ा है।' इस वाक्य मे २३ अक्षर व्युत्क्रम मे अ ये हुए है। सख्यानो मे भी वैसे ही है, जैसे कि-८, ४१, ७५, ६२३ (आठ करोड, इकतालीस लाख, पचहत्तर हजार नव सौ तेइस) । यह सख्या एक राज्य की उपज बताती है। इसलिए इसमे से कोई भी अंक इधर-उधर किया जा सके ऐसा नही है। इसलिए क्रम से उन्हे याद रखना जरूरी है। अब तुम देख सकते हो कि बारह अक्षर या तैबीस अक्षरों को याद करने की अपेक्षा यह काम कठिन है, क्योकि ये शब्द सरलता से याद रह जाते है, पर अक सरलता से याद नहीं रह सकते। ऐसा होने का कारण यह है कि शब्द भावो का अनुसत्वान करते है, अर्थात् किसी प्रकार का विचार या किसी प्रकार का चित्र प्रस्तुत करते है, जबकि अंक मात्र विशेषण रूप होने से वैसा चित्र प्रस्तुत नही कर सकते। परन्तु पीछे जो सिद्धान्त वताया गया था, उसका यदि हम उपयोग करे तो हमारा कार्य सरल बन जाए । जैसे कि
SR No.010740
Book TitleSmarankala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Mohanlalmuni
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1980
Total Pages293
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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