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________________ मातृ शिक्षा करने की भावना भरे, वह तो लौकिक तथा लोकोत्तर दोनों ही दृष्टियों से अत्यधिक प्रशंसनीय मानी जाती है। माता लक्ष्मीदेवी भी एक इसी प्रकार की माता थी । वह अपने पुत्र सोहनलाल को बीमारी की अवस्था में भी अनेक प्रकार की उत्तम शिक्षाएं दिया करती थी, जिनके प्रभाव से उस बालक की भावनाएं दिन प्रति दिन पवित्र से पवित्रतर बनती जाती थीं। आश्विन मास में वर्षा की समाप्ति पर प्रायः मच्छर बढ़ जाते हैं। इससे प्रायः सभी स्थानों में मलेरिया ज्वर का प्रकोप बढ़ जाया करता है । इस समय हमारे चरित्रनायक श्री सोहनलाल जी. की आयु छै वर्ष की हो गई है। मच्छरों के कारण वह भी मलेरिया ज्वर से पीड़ित हैं और अपने विशाल भवन में ज्वर के कारण एक पलंग पर लेटे हुए हैं। उनकी माता उनके पास बैठी हुई उनकी सुश्रूषा में लीन है। अचानक माताने पुत्र से पूछा. माता-वेटा सोहन, अब तुम्हारी तबियत कैसी है ? सोहनलाल-माता जी, कल से तो अच्छी है, किन्तु सारे शरीर में दर्द हो रहा है। माता-बेटा, क्या तुम यह जानते हो कि मनुष्य रोगी क्यों होता है ? सोहनलाल-माता जी! जो समय पर भोजन न करे, ऋतु के प्रतिकूल भोजन करे, दुर्गन्धमय स्थान में निवास करे, विषैले जन्तुओं वाले जीवों के बीच में रहे; बिना भूख के गरिष्ट पदार्थों का सेवन करे तथा स्वाद के कारण मर्यादा से अधिक भोजन करे वह अवश्य ही बीमार पड़ता है। इसके अतिरिक्त कुछ और भी छोटे मोटे कारण हैं, जिन से मनुष्य रोगग्रस्त होकर दुःसह वेदना पाता है।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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