SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सर्प द्वारा छत्र करना सिरके ऊपर अपने फण को ऊंचा खड़ा करके इस प्रकार फैलाया कि वह छतरी जैसा बनकर सूर्य के ताप से बालक की रक्षा करने लगा। इस प्रकार मुख पर पड़ते हुए सूर्य ताप के हट जाने से बालक की निद्रा और भी गाढ़ी हो गई। इस प्रकार भयंकर विषधर सर्प बालक के शिर पर छत्र कर रहा था और बालक आनन्द में पड़ा हुआ सो रहा था। इसी समय अचानक माता कमरे की ओर आई। उसने दूर से ही इस दृश्य को देखा। इस दृश्य को देखकर एक बार तो उस माता का कोमल हृदय वात्सल्यभाव से परिपूर्ण होकर कांप उठा। वह अत्यधिक आश्चर्यचकित होकर मन में विचार करने लगी __"हे भगवन ! मैं यह क्या देख रही हूं ! मेरा एकवर्षीय बालक सोहनलाल और इस सर्प के वश में ! ऐसा न हो कि यह नाग बालक को दश ले। तब तो मैं कहीं की भी न रहूंगी। फिर मैं इस नाग को यहां से हटाऊं भी तो किस प्रकार ? यदि इसको हटाने का लेशमात्र भी प्रयत्न किया गया तो सम्भव है कि काटने की इच्छा न होते हुए भी यह चिढ़कर बच्चे को काट ले। अस्तु इस समय तो सिवा इसके और कुछ उपाय नहीं है कि मैं यहीं खड़ी खड़ी इस सर्प के हटने की प्रतीक्षा करू।" इस प्रकार माता लक्ष्मीदेवी किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वहीं खड़ी खड़ी उस सर्प के हटने की प्रतीक्षा करने लगी। उसको यह देखकर अत्यधिक आश्चर्य हुआ कि जिस प्रकार बीन बजने पर सर्प प्रसन्न होकर खड़ा २ झूमने लगता है और जिधर जिधर - बीन घूमती जाती है उधर उधर ही वह अपने फन को फैलाता
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy