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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी मेरी ओर से तुम्हारे इस कार्य में कभी बाधा न डाली जावेगी। हे देवी! यह हमारे महान् पुण्य का उदय है कि कोई ऐसा पवित्र तथा पुण्यशाली जीव तुम्हारे गर्भ में आया है कि उसने आते ही तुम्हारे विचारों में ऐसा परिवर्तन कर दिया। जिस आत्मा ने जन्म लेने के पूर्व ही ऐसा अद्भुत चमत्कार दिखला दिया तो जन्म लेने के उपरान्त तो भविष्य में न जाने वह कैसे कैसे श्रेष्ठ कार्य करके हमारे कुल की कीर्ति को दिग्दिगन्त में फैलावेगा।" पति के इस प्रकार दौह दपूर्तिकर उत्साहजनक वचनों को सुनकर लक्ष्मी देवी को अत्यन्त हर्ष हुआ। अव वह निश्चिन्त होकर रात दिन धार्मिक क्रियाओं का पालन दत्तचित्त होकर करने लगी। वह अनेक दीन हीन जनों को सप्रेम उनकी इच्छित वस्तुओं का यथाशक्ति दान दिया करती तथा अपने शेष समय को पठन पाठन, सामायिक तथा प्रति-क्रमण आदि करने में लगाया करती । अनेक अवसरों पर शाह मथुराप्रसादजी भी उसके इन कार्यों में योग दिया करते थे, जिससे उसके मन का उत्साह और भी बढ़ जाया करता था। इस प्रकार उसके मन का दौहद पूर्ण होने से उसका गर्भ शीघ्रता से पुष्ट होने लगा। देखते २ नौ मास निकल गए और दसवें मास में श्रीमती लक्ष्मी देवी उस महापुरुष को जन्म देने की तयारी करने लगी, जिसका उपदेश सुनने की न जाने कितने संतप्त आत्मा बिना जाने ही प्रतीक्षा कर रहे थे। श्रीमद् भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।। की तयारी करने का लक्ष्मी देवी समास निकल गए
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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