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________________ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी था कि वह दूसरों को सुखी बनाने के लिये अपने सुख का भी बलिदान कर देती थीं। वह अपने पिता तथा पति दोनों कुलों की कीर्ति को उज्वल करती हुई मन, वचन तथा काय से सदा ही पति की सेवा में लगी रहती थीं। उनको निर्धनों की सेवा करने में भारी आनन्द प्राता था। अपने इसी रवभाव के कारण आप सम्बडियाल आते ही अनेक अनाथ बालकों की माता बन गई। आप आर्थिक सहायता देने के अतिरिक्त उनके जीवन को सुधारने का यत्न भी करती रहती थीं। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये वह उन अनाथ बच्चों को प्रेम सहित ऐसी ऐसी कथाएँ सुनाया करती थीं, जिससे उनके हृदय के दुर्गुण दूर होकर वह गुणवान बन सकें। . शाह मथुरादास तथा श्रीमती लक्ष्मीदेवी दोनों में धर्म के प्रति उत्कट रुचि थी। आप लोगों को आचार्य श्री १००८ श्री अमरसिंह जी महाराज का उपदेश सुनने का अवसर प्रायः मिल जाता था। 'अतएव आप दोनों उनको गुरु मान कर उनमें दृढ़ गुरुभक्ति रखते थे। आप दोनों में गुरुभक्ति का उद्रेक इतना बढ़ा कि आप दोनों ने युवावस्था में ही गुरु महाराज से श्रावक के द्वादश व्रतों को ग्रहण करके अपने मनुष्य जीवन को सफल बना लिया। श्राप दोनों एकांत में बैठने पर भी प्रायः धर्मचर्चा ही किया करते थे। आप दोनों ने अपने सुन्दर स्वभाव से घर को स्वर्ग के समान बना रक्खा था। यह दोनों अपने मन में दुर्भावना को न लाते हुए अपने द्वादश व्रतों का इस प्रकार पालन फरते थे कि उनमें अतिचार लगने की सम्भावना भी नहीं होती थी। इस प्रकार आप दोनों का जीवन जनताके लिये एक आदर्श गृहस्थ के जीवन का दृश्य उपस्थित करता था। इस प्रकार दोनों न केवल' सम्बडियाल नगर के वरन समस्त जैन समाज के गार थे।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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