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________________ वंश परिचय पर अपना प्रेम राज्य स्थापित कर लिया था। सारी जनता आपको चौधरी के नाम से पुकारतो थी। यह घटना अब से लगभग सौ सवा सौ वर्ष पूर्व की है। उस समय के चौधरी आज के जैसे स्वार्थी तथा दलबन्दी करने वाले न होकर पूर्णतया परोपकारी होते थे। इसीलिये उस समय चौधरियों का महत्व इतना अधिक था कि जनता चौधरी की आज्ञा को राजाज्ञा की अपेक्षा भी विशेष महत्व देती थीं। चौधरी होने के अतिरिक्त आप एक अत्यन्त कुशल तथा सफल व्यापारी भी थे। आप सोने चांदी का व्यापार करते थे। इसीलिये आपके यहां बड़ी भारी विशाल सम्पत्ति थी। किन्तु सम्पत्ति पाकर भी आप कंजूस नहीं थे। आप उसका उपयोग बराबर दान आदि सत्कार्यो में करते रहते थे। आपके पास विशाल सम्पत्ति के अतिरिक्त ऐसा मनोहर रूप था, जो राजा महाराजाओं के रूप को भी तिरस्कृत करता था। अधिकार, धन, रूप तथा , युवावस्था होने पर भी आप पूर्ण सदाचारी थे। आपके सदाचार की प्रशंसा चारों ओर सुनने में आती रहती थी। आप की धर्मपत्नी का शुभ नाम लक्ष्मी देवी था। उनका रूप वास्तव में ही लक्ष्मी के समान था। वह शील आदि । गुणों की भंडार थी। लक्ष्मी देवी के भाई लाला गंडामलजी जिला स्यालकोट स्थित पसरूर नामक नगर के निवासीथे। जनता उनको प्रायः गंडेशाह कहा करती थी। वह पंजाब प्रान्तीय जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी कान्फ्रेंस के प्रधान थे। वह म्युनि. सिपल कमेटी के प्रधान भी कुछ समय तक रहे थे। गंडामल जी का कुल पंजाब में अत्यंत प्रतिष्ठित तथा ऊंचा माना जाता था। आप भी सोने चाँदी का ब्यापार करते थे और अत्यन्त धनाढ्य तथा प्रभुतासम्पन्न थे। लक्ष्मीदेवी की आत्मा उनके शरीर से भी अधिक सुन्दर थी। उनके सम्बन्ध में जनता का यह विश्वास
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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