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________________ ३८२ प्रधानाचार्य श्री साहनलाल जी वर्षा ऋतु मे डेरा ममटी मे ऐसी भारी वर्षा हुई कि सारी चस्ती में पानी भर गया। तब जनता की समझ मे आया कि पूज्य श्री ने मुनि गणपतराय जी महाराज को डेरा ममटी मे चातुर्मास क्यो नहीं करने दिया था। कानचन्द नामक एक वैरागी ने पडित मुनि श्री शुक्लचन्द जी महाराज से दीक्षा देने की प्रार्थना की। इस पर आपने पूज्य महाराज के पास आकर कहा शुक्लचन्द जी-गुरु देव । कानचन्द बेरागी दीक्षा के लिये अत्यधिक आग्रह कर रहा है। आपकी इस विषय मे क्या पाना है ? पूज्य महाराज-दीक्षा तुम भले ही दे दो, किन्तु वह मुनिव्रत की कठिनाइयों से घबरा कर दीक्षा छोड़ देगा। शुक्लचन्द जी-तव फिर उसे दीक्षा क्यों दी जावं ? पूज्य महाराज-दीक्षा तो उसने लेनी ही है। किन्तु इस बार दीक्षा छोड़ कर वह दुवारा फिर दीक्षा लेगा और फिर भी आपके पास आकर फिर दीक्षा छोड़ेगा। वह तीसरी बार दीक्षा लेने फिर आवेगा और यदि तीसरी बार उसे दीक्षा मिल गई तो फिर वह दीक्षा मे निभा रहेगा। . शुक्लचन्द जी-तब तो उसको दीक्षा दे देनी चाहिये। पूज्य महाराज-ऐसा ही मेरा विचार भी है। पूज्य महाराज से इस प्रकार अनुमति ले कर पंडित मुनि शुक्लचन्द जी महाराज ने कानचन्द वैरागी को दीक्षा दे दी।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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