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________________ आत्म शक्ति : ३८१ लेकर कटोरे में निचोड़ लिया। इसके बाद उसने उस पसीने को अपनी बहिन के शरीर पर लगाया तो उसका सारा रोग दूर हो गया। इससे पूर्व भगवान दास ने उनसे कई वार रोग निवारण करने की प्रार्थना की थी और वह हर बार यही कह दिया करते थे ‘जा धर्म ध्यान कर। इससे सब कष्ट दूर हो जावेगे।" वास्तव मे वह लब्धिधारी मुनि थे। अट्टाइस लब्धियों में से उनको किसी न किसी लब्धि की प्राप्ति अवश्य हो चुकी थी। एक बार मुनि श्री गणपत राय जी महाराज डेरा समटी के स्थानक में विराजमान थे। वहां के श्री संघ ने आपसे अत्यन्त आग्रहपूर्वक वहां चातुर्मास करने की विनती की। तब आपने उत्तर दिया ___ "मैं पूज्य श्री की आज्ञा के विना कहीं भी चातुर्मास करने की स्वीकृति नहीं दे सकता। मेरे चातुर्मास के लिये उन से ही विनती करनी चाहिये।" ___ इस पर डेरा ममटी के श्री संघ ने अमृतसर जाकर उनसे विनती की कि वह मुनि गणपतराय जी महाराज को डेरा ममटी में चातुर्मास करने की आज्ञा दे दें। तब पूज्य श्री ने उनको उत्तर दिया __"अभी आपके यहां उनका चातुर्मास होने का अवसर नहीं है।" - यह कह कर पूज्य श्री ने मुनि गणपतराय जी महाराज को एक अन्य स्थान में चातुर्मास करने की आज्ञा दी।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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