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________________ ३७२ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी आपके उपाश्रय में पहुंचने पर पूज्य श्री आपको देख कर बोले , "गैंडे राय जी ! इस प्रकार की स्थिति मे आप यहां क्यों __ चले आए ?" इस पर आपने उत्तर दिया "फिर आपकी सेवा कौन करता?" xxx यद्यपि इन दिनों अमृतसर मे सैनिक शासन के कारण किसी का भी बाहिर निकलना सुरक्षित नहीं था, किन्तु जंडियाला गुरु के निवासी राय साहिब टेकचन्द ने जैन साधुओं के जाने आने की कठिनाई को दूर कर दिया था। किन्तु उपाश्रय के समीप ही एक मकान का नाम जमादार की हवेली था । उसमें रहने वाली एक मेस को सार कर किसी ने उसके शव को उपाश्रय की ड्योढ़ी में डाल दिया था। इसी उपाश्रय में साधु लोग दूसरी मंजिल पर तथा पूज्य महाराज तीसरी मंजिल पर थे। शव के सम्बन्ध में जब तहकीकात करने नागरिक तथा सैनिक अधिकारी उपाश्रय की नीचे की मंजिल में आए तो सबको यह भय हो गया कि कहीं वह ऊपर आकर साधुओं को दिक न करे। किन्तु विधि की गति कुछ ऐसी हुई कि उन अधिकारियों को उपाश्रय की नीचे की मंजिल ही दिखलाई दी, दूसरी मजिल, तीसरी मंजिल तया ऊपर जाने के जीने उनको कुछ भी दिखलाई नहों दिये । इस पर वह लोग कहने लगे। "अच्छा ! यह मकान कुल इतना ही है ?" साथ के लोगों ने इसका कुछ भी उत्तर नहीं दिया और वह लोग वहां से देख भाल करके चापिस चले गए।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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