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________________ ३२० प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी १-पट्टी निवासी नगीनचन्द ओसवाल को मुनि पंडित नरपतराय जी का शिष्य बनाया गया। २-मुनि श्री गैडेराय जी महाराज ने जजों में कपूरचन्द जी को दीक्षा दे कर उन्हे मुनि श्री नत्थूराम जी का शिष्य बनाया। ३-नवाशहर मे गणी श्री उदयचन्द जी न संडौरा निवानी रघुबरदयाल जी वैरागी को दीक्षा दी। ___इन दीक्षाओं के अतिरित्त एक महत्वपूर्ण दीक्षा अमृतसर मे स्वय पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज ने श्री शुक्लचन्द जी वैरागी को देकर उन्हे युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज का शिप्य बनाया। उनके तीनों नामो में से प्राचार्य श्री सोहनलाल जी महाराज ने उनका शुक्लचंद नाम ही पनन्द किया। यह दीदा याषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा संवत् १६७३ को दी गई थी। वास्तव में यह दीक्षा अत्यधिक महत्वपूर्ण थी। आगे चल कर यह मुनिराज जैन समाज के बड़े भारी आधार सिद्ध हुए। जिस समय पूज्य श्री सोहनलाल जी महाराज के बाद युवाचार्य श्री काशीराम जी महाराज प्राचार्य बने तो मुनि श्री शुक्लचन्द जी को आचार्य काशीराम जी के स्वर्गवास के बाद युवाचार्य बनाया गया। किन्तु मुनि श्री शुक्लचन्द जी इतने त्यागी तपस्वी थे कि सादड़ी सम्मेलन के समय उन्होंने संघ की एकता के लिए अपने युवाचार्य पद को भी छोड़ दिया। आज कल आप अपनी अगाध विद्वत्ता के कारण पंडित मुनि श्री शुक्लचन्द जी महाराज कहलाते है । अतएव अगले अध्याय मे आपके चरित्र के ऊपर विस्तारपूर्वक विचार किया जाता है।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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