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________________ पदवी दान महोत्सव ३१६ पूज्य श्री के इस भाषण के पश्चात् उनकी जय जयकार के शब्दों से आकाश गूंज उठा। इस प्रकार यह महत्वपूर्ण पदवी दान महोत्सव समाप्त हुआ । महोत्सव के पश्चात् प्रायः सभी मुनिराज अमृतसर से विहार कर गए, किन्तु पूज्य श्री मुनि गैंडेराय जी आदि मुनियों सहित अपने रोग के कारण अमृतसर में ही रहे । वास्तव में पूज्य श्री का यह समय अत्यन्त कठिन था । उनका रोग बढ़ता जाता था, किन्तु वह अपने तपश्चरण में त्रुटि नही होने देते थे । पदवीदान महोत्सव से अगले वर्ष संवत् १६७० में उन्होंने नारोवाल निवासी तिलकचन्द जी ओसवाल को दीक्षा दिला कर उनको मुनि श्री नरपत राय जी महाराज का शिष्य बनाया । आपके शासन में संवत् १६७२ में बंगा जिला जालन्धर में तीन दीक्षाएं हुई | जम्मू राज्य के निवासी कस्तूरचन्द बैरागी को मुनि श्री गैडेराय जी का शिष्य बनाया गया। स्यालकोट निवासी निहालचन्द जी ओसवाल को भी मुनि श्री गैंडेराय जी का ही शिष्य बनाया गया। इसके अतिरिक्त जम्मू राज्य के निवासी दीपचन्द जी बैरागी को श्री कर्मचन्द जी बहुसूत्री का शिष्य बनाया गया । निहालचन्द जी महाराज बाद में बहुत बड़े तपस्वी प्रमाणित हुए। आपने सोलह दिन तक के कई बार निर्जल व्रत किये । २१ दिन तक का भी निर्जल व्रत किया । जल के साथ तो आपने ६१ दिन तक का व्रत भी किया। तीस पच्चीस, चालीस आदि दिनों के व्रत तो आपने अनेक बार किये । , अगले वर्ष पूज्य श्री के शासन मे अमृतसर तथा अन्य स्थानों में चार दीक्षाएं हुई 2
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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