SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युवराज पद, २८१ अपने पर्यों का निश्चय अपने शास्त्रों के अनुसार करके भगवान की आज्ञानुसार आराधक क्यों न बनें। इस विषय में यहां निवेदन करने से पूर्व पूज्य श्री मोतीराम जी महाराज की श्राज्ञानुसार आर्या पार्वती जी की सहमति से मुनिमडल इस विशय पर आपस में परामर्श करके यह निश्चय कर चुका है कि आगे के लिये मुनि श्रीचन्द जी द्वारा बनाए हुए तिथिपत्र के अनुसार तिथियां, पर्व के दिन तथा चातुर्मास श्रादि के दिनों का निश्चय किया जावे, अतएव भावी चातुर्मास जैन शास्त्रो के अनुसार ही होगा। _ 'आपको यह स्मरण रखना चाहिये कि जैन शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास चार मास का ही होता है, अधिक का नहीं होता' कारण कि वर्ष में जो मास बढ़ जाने के कारण दो दो बार आते हैं, वह आषाढ़ और • पौप यह दो मास ही होते है, जो चातुर्मास मे नहीं पाते । इस लिये जैन साधुओं का चातुमास सदा ही चार मास का होता है।" ___ मुनि श्री मयाराम जी के इस कथन के बाद पञ्चांग के सम्बन्ध मे सूक्ष्म दृष्टि ते जब विचार किया गया तो उस में अनेक त्रुटियां दिखलाई दीं। मुनि श्री चन्द का बनाया हुआ तिथिपत्र भी त्रुटि रहित सिद्ध नहीं हो सका । अतएव इस विचार विमर्श के पश्चात् पूज्य श्री मोतीराम जी महाराज बोले। नवीन जैन पञ्चांग तयार करने का विषय युवाचर्य मुनि श्री सोहनलाल को सौंप दिया जावे। उन्होंने जैन ज्योतिप तथा लौकिक ज्योतिष दोनों का ही तुलनात्मक अध्ययन किया है। अस्तु उनको यह कार्य दिया जावे कि वह जैन शास्त्रों के
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy