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________________ ८० प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी दिगम्बर सम्प्रदायमे इनचारों अनुयोगों मे से गणितानुयोग को करूणानुयोग तथा कथानुयोग को प्रथमानुयोग भी कहा जाता है, हमारे द्रव्यानुयोग, चरितानुयोग तथा कथानुयोग के साहित्य अत्याधिक विकसित होने पर भी गणितानुयोग का हमारा साहित्य बहुत कम है। वह इतना कम है कि वह न होने के बराबर है, जिससे साधु लोगों को व्रत पालन में कठिनाई होती है। यथापि गणितानुयोग के मूल सिद्धांतों का वर्णन हमारे सूत्र ग्रन्थों में पर्याप्त किया गया है, किन्तु वह इतना कठिन है कि अनेक साधुओं की समझ में नहीं आता । फिर ग्रहस्थ तो उसको किस प्रकार समझ सकते है। इसी लिये उस पर व्यवहारिक दृष्टि से ध्यान नहीं दिया जाता और न उस के अनुसार शास्त्रीय ऐसे यह जैन तिथिपत्र ही बनाए जाते हैं। इसी कारण हमारे अनेक पर्वदिन आज भगवान की आज्ञानुसार नहीं निश्चित किये जाते, भगवान ने स्पष्ट सबसे इसको मिथ्यात्व कहा है। हम आज कल के पौंचांगों को मिथ्यात्व मानते हुए भी उन्हीं का आलम्बन लेते हैं और उन्ही के अनुसार अपने तिथिपत्र बनाते हैं और उन का नाम जैन तिथिपत्र रख देते हैं, फिर उसमे से उत्तराध्ययन सूत्र के नाम से अटकलपच्चो, त्रयोदशी तिथि को घटाते हैं। उसका शेष सब हिसाव मिथ्यात्व मत के आधार पर लगाया जाता है। इस प्रकार हम दोनों प्रणालियों को मिला कर 'आधा तीतर आधा वटेर' वाली कहावत को चरितार्थ करते है। श्राज सरकार के राज मे सब को अपने अपने धर्म शास्त्रों के अनुसार आचरण करने की सुविधा प्राप्त है तो हम भी
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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