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________________ २४४ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी हैं। इसका यह अर्थ तो नहीं हैं कि वहां मूर्ति थी, जिसकी उस लब्धिधारी मुनि ने पूजा की। 'वंदयिता' पद से पूजन का भी पता नहीं चलता, फिर आप आगम ग्रन्थों से मूर्ति पूजा किस प्रकार सिद्ध कर सकते है ? इसके अतिरिक्त आगमों में यह स्थान स्थान पर लिखा हुआ है कि देवता लोग अवती होते हैं। फिर नित्य पूजा करने के व्रत का निर्वाह किस प्रकार कर सकते हैं। यदि श्राप यह मानते हो कि वह कभी कभी पूजा कर लिया करते होंगे तो नित्य प्रक्षाल तथा पूजन न होने से वहां की प्रतिमाओं की अविनय होती होगी। . पूज्य मुनि श्री सोहनलाल जी महाराज के द्वारा लिखे हुए इन प्रश्नों को लेकर बाबू त्रिलोकचन्द जी आत्माराम जी के पास गये। उन्होंने यह सभी प्रश्न उनको पढ़ कर सुना दिये। किन्तु उन्होंने उनका कुछ भी उत्तर नहीं दिया। इसमें संदेह नहीं कि संबेगियों के अनेक ग्रन्थों मे प्रतिमा पूजन का वर्णन है। 'किन्तु वह सभी ग्रन्थ नए हैं, उनमे प्राचीन कोई नहीं है। आगम ग्रंथों में तो मूर्ति पूजा का वर्णन कहीं भी नहीं पाया जाता। संसार में सभी बातों का ज्ञान होने के चार साधन हैंनाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । जाम के बिना तो किसी भी वस्तु का ज्ञान नहीं हो सकता। जिस किसी वस्तु का भी वर्णन किया जाता है नाम के बिना उसके विषय मे कुछ भी पता नही चल सकता । नाम रखने में चस्तु के गुण का ध्यान नहीं रक्खा जाता है। यह प्रायः देखन
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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