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________________ दीनों का कष्ट निवारण २०३ समय वह बालिका को ले कर किनारे पर पहुंचे तो सारी जनता ने बड़ी भारी हर्षध्वनि करके उनका स्वागत किया। बालिका की माता तो पगली के समान उनकी ओर को दौड़ी । उसने उनके पास पहुंचते ही अपनी पुत्री को हृदय से लगा लिया। अपनी बेटी को अपनी गोद में लेकर वह सोहनलाल जी से बोली ___ "भाई ! धन्य है तेरे माता पिता को, जिन्होंने तेरे जैसे अद्ध त वीर, साहसी तथा धर्मात्मा पुत्र को जन्म दिया। तू ने श्राज अपने प्राणों की चिन्ता न करते हुये मेरी बच्ची को मृत्यु के मुख से निकाल लिया। मैं नहीं जानती कि तुझे किन शब्दों में धन्यवाद दू तथा क्या पुरस्कार दू।" उसके इन शब्दों को सुन कर सोहनलाल जी बोले "बहिन ! यह कोई बड़ी बात नहीं है। यह तो एक मनुष्योचित साधारण कर्तव्य था। मैंने यह कार्य उपकार को ध्यान में रख कर नहीं किया। इस बालिका को जल में बहते देख कर मेरा अन्तरात्मा अत्यन्त व्याकुल हो गया तथा उसकी रक्षा करने के लिए तड़प उठा। मैंने तो अपने आत्मा को शान्त करने के लिए जल में कूद कर बालिका के प्राण बचाए। मुझे प्रसन्नता है कि मेरा परिश्रम सफल हो गया। वास्तव में इस समय मेरा आत्मा अत्यन्त शान्त तथा प्रसन्न है। यह क्या मेरे लिये कम पुरस्कार है ? इस समय तो आप इस 'छोटी सी बच्ची को सात्वना दें, क्योंकि यह अभी भी घबरा रही है । मुझे इसी के सुख में सुख तथा शान्ति है।" ऐसा कह कर सोहनलाल जी उस अपार भीड़ मे अदृश्य होगए और बहुत कुछ ढूढने पर भी नहीं मिले।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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