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________________ २०२ प्रधानाचार्य श्री मोहनलाल जी वह यमुना के जल प्रवाह में तेजी से बह चली। जनता उसको देख कर खेद प्रकट करने लगी, किन्तु यमुना के उस प्रचण्ड प्रवाह में कूद कर उस कन्या के प्राण बचाने का साहस किसी को भी नहीं हुआ। उसकी माता बिलख विलख कर रोती हुई जनता से प्रार्थना कर रही थी कि कोई उसको पुत्री के प्राण बचा दे। किन्तु उसकी प्रार्थना पर ध्यान देने के लिए कोई भी वीर अग्रसर होने का साहस न कर सका। बालिका भी 'मुझे बचायो' 'मुझे बचाओ' का शब्द करके रोती हुई बहती चली जाती थी। उस समय सोहनलाल जी भी यमुना के प्रवाह को देखने यमुना तट पर गए हुए थे। बालिका तथा उसकी माता की करुण पुकार पर उनका वीर हृदय करुणा से भर गया। अतएव वह तत्काल उसकी रक्षा करने के लिए अपने प्राणों की चिन्ता न करते हुए उस अपार जल राशि में सहसा कूद पड़े। अब उन्होंने अपनी बलिष्ठ भुजाओं से यमुना की छाती को चीरते हुए पूर्ण वेग से उस बालिका की ओर बढ़ना प्रारम्भ किया। उनको यमुना जी में कूदते तथा प्रवाह में जाते हुए देख कर सभी ने उनसे कहा कि "भाई आगे मत वढ़ो, वापिस लौट आओ। लड़की ने तो बचना ही क्या है। तुम निश्चय से अपने प्राणों को संकट में डाल रहे हो।" किन्तु सोहनलाल जी ने उन लोगों के कहने पर ध्यान नहीं दिया और वह यमुना के प्रबल प्रवाह मे आगे बढ़ते ही गए। अन्त में वह बालिका के पास पहुंच ही गए। उन्होंने बालिका को अपनी हथेली पर थाम लिया और दूसरे हाथ से उस अनन्त जल राशि को चीरते हुए किनारे की ओर आने लगे ! किनारे पर खड़े सभी व्यक्तियों की आंखें इस परकाजी महा पुरुष के अलौकिक साहस पर एकाग्रता से लगी हुइ थीं। जिस
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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