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________________ १८६ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी के सतीत्व की रक्षा के लिये शिवा जी के पुत्र शम्मा जी का सामना किया था। बाद में इसी कारण शम्मा जी ने उसे गिरफ्तार करके औरंगजेब के पास भेज दिया था। किन्तु फिर भी वह वीर अपने प्रण पर अटल रहा और अन्त में उसे धर्म के प्रभाव से ऐसे सहायक भी मिल गए, जिन्होंने उसको छुटकारा दिला दिया। हमारे चरित्रनायक श्री सोहनलाल जी ने एक बार चार कामपिपासुओं के पंजे मे पड़ी हुई एक अवला के सतीत्व की रक्षा अपने बाहुवल से केवल अपनी वाईस वर्ष की आयु मे की थी। घटना इस प्रकार है एक दिन वैशाख मास मे श्री सोहनलाल जी किसी गृहकार्य वश पसरूर नगर से तीन मील दूर सौभाग सिंह के किले में गए थे। कार्य समाप्त करते करते आपको वहीं दिन छिप गया। वहां वालों ने आपको रात्रि भर वहीं रोकने का आग्रह भी किया। किन्तु आप न रुके और पसरूर के लिये चल ही दिये। मार्ग में दिन अच्छी तरह छिप गया और अंधकार हो गया। आप अपने विचारों मे लीन हुए मार्ग मे चले जा रहे थे कि आपके कान मे किसी अबला के दु.ख भरे निम्नलिखित शब्द पड़े "अरे भाई! कोई मुझे वचाओ। यह पापो मेरा धर्म नष्ट कर रहे हैं।" सोहनलाल जी इन शब्दों को सुनते ही यह समझ गए कि कोई अत्याचारी किसी अबला का सतीत्व नष्ट करने का यत्न कर रहा है। अतएव आप उसकी रक्षा करने के उद्देश्य से आवाज की ओर चल दिये। वहां जाकर आपने क्या देखा कि वई नदी के किनारे कुछ दूरी पर चार युवक खड़े है। उनके वीच में एक बीसवर्षीया सुन्दर स्त्री नीचे पड़ी थी। मार खाने
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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