SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 215
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दीक्षा का निश्चय १७६ ___"सेनापति जी ! आयु का क्या भरोसा ? हम ने बचपन में चक्रवर्ती के रूप की प्रशंसा सुनी थी। सुनते ही हम उनके दर्शन के लिये घर से निकल पड़े। इस प्रकार हम सारी आयु भर चल कर चक्रवर्ती के दर्शनों के लिये यहां पहुंचे हैं। अतएव आप हमको उनके दर्शन अविलम्ब करा दें।" सेनापति ने उन विनों की जराजर्जरित अवस्था देख कर उन से पूछा "आप इतने अधिक टूटे जूते ले कर क्यों आए हो?" इस पर ब्राह्मण ने उत्तर दिया "यह सब जूते मार्ग में घिस गए हैं।" सेनापति ने ब्राह्मणों की इस प्रकार की अद्भुत उत्कण्ठा देख कर चक्रवर्ती के पास जा कर निवेदन किया और उनको विनों का हाल कह सुनाया। इस पर चक्रवर्ती ने ब्राह्मणों को अपने पास बुलवाया। अब तो सेनापति के साथ विनों ने भी अन्तःपुर में प्रवेश किया। जिस समय विप्र चक्रवर्ती के सन्मुख पहुंचे तो वह स्नान की चौकी पर नंगे बदन बैठे हुए थे। अतएव उस समय उनके शरीर पर कोई भी वस्त्राभूषण नहीं थे। उनके शरीर पर अंगमर्दन के पदार्थों का विलेपन तथा एक कटिवस्त्र ही था। देवता लोग उनके चन्द्र किरणों को भी तिरस्कृत करने वाले रूप, खिले हुए कमल पुष्प के समान मुख कमल तथा विद्युत्प्रभा से भी अधिक चमकने वाले नयनाभिराम कंचनवर्ण शरीर को देख कर आनन्द में विभोर हो कर अत्यधिक प्रसन्न हुए और अपना मस्तक हिलाने लगे। तब चक्रवर्ती ने उनसे प्रश्न किया "आप दोनों अपना मस्तक क्यों हिला रहे हो ?"
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy