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________________ १५८ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी विनय करते हुए अपमानित होना पड़ा। इसी के कारण रावण जैसे धुरंधर राजनीतिक विद्वान का सर्वस्व नष्ट हो गया और शूर्पणखा को अपमानित होना पड़ा। इस कामदेव पर विजय प्राप्त करना एक दम असंभव न होने पर भी अत्यन्त कठिन अवश्य है। कामदेव पर विजय प्राप्त करने वाले महापुरुष संसार में विरले ही होते हैं। ऐसे महापुरुपों को वास्तव में धन्य है। इस स्थल पर एक ऐसे ही बालब्रह्मचारी महापुरुप की एक सच्ची जीवन घटना का वर्णन किया जाता है, जिस ने गृहस्थाश्रम मे रहते हुए भी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर अपने सदाचारपूर्ण जीवन की छाप डाल कर एक पतिता के जीवन को सन्मार्ग पर लगाया था। __एक विशाल भवन के एक कमरे में एक बीसवर्षीया युवती पलंग पर लेटी हुई करवटे बदल रही है। कमरे में सभी प्रकार का बहुमूल्य सामान है, जो उसके मालिक के वैभवशाली होने का प्रमाण दे रहा है । स्त्री का रंग गौर तथा शरीर की कान्ति कुन्दन के समान चमक रही है। उसके पास उसकी एक सखी बैठी हुई है, जो उसकी दशा से दुखी दिखलाई दे रही है। सखी ने युवती के शरीर पर हाथ फेरते हुए कहा सखी-सखी ! तुम्हें क्या हो गया है ? कई दिन से तुम्हारा ध्यान किसी भी काम में नहीं लग रहा । न जाने एकान्त मे वैठी बैठी क्या सोचा करती हो। यह सुन कर युवती ने उत्तर दिया युवती-सखी! तुझे मैं क्या बतलाऊं? अन्तःकरण की वात कहने मे भी तो लज्जा आती है। । सखी-सखी! मैं प्रतिज्ञापूर्वक कहती हूं कि तेरी बात में
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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