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________________ ६७ फर सोग मात्र ही थी। णमोकार मंत्र का प्रभाव ___"सावधान ! करवट मत वदलना ! दूसरी ओर पलंग पर एक स्थूलकाय विषधर सर्प लेटा हुआ है ।" __ . आपने इन शब्दों को कुछ उनींदी दशा में सुना। अतएव आप यह विचार करते हुए विना करवट बदले फिर सो गए कि यह आवाज न होकर एक भ्रम मात्र ही है। किन्तु आपकी करवट दु:खने लगी थी। अतएव करवट बदलने के लिये दुवारा आपकी नींद फिर कुछ हलकी हो गई और आप करवतः बदलने ही वाले थे कि आपको दुवारा फिर वही शब्द सुनाई दिये। ___ “सावधान ! करवट मत बदलना! दूसरी ओर पलंग पर एक स्थूलकाय विषधर सर्प सोया हुआ है ।" किन्तु आप इन शब्दों पर ध्यान न देकर करवट बदलने ही लगे तो पीछे से आपको कुछ धक्का लगा। इस पर आपने आंख खोलकर पीछे की ओर देखा तो आपको एक स्थूलकाय कृष्ण सर्प अपने पलंग पर अपने ही बराबर सोता हुआ दिखाई दिया। उस समय सोहनलाल जी की आयु कुल ग्यारह वर्ष थी। किन्तु श्राप में साहस तथा सूझ की कोई कमी न थी। अतएव आप सांप को देख कर घवराए नहीं। आप फुर्ती से पलंग से उतर कर नीचे आ गए। तभी आप ने कुछ क्षण तक विचार करके निर्भीकता से अपने पलंग की चादर को इस प्रकार लपेटा कि उस से न तो लेशमात्र शब्द ही हुआ और न सर्प का वदन ही लेशमात्र हिला। फिर आप ने भुजंगराज को उस चादर में लपेट कर उसको ऊपर से इस प्रकार बांध दिया कि सर्प के उस मे से निकल जाने के लिए कोई भी छेद न रहा। इस प्रकार आर ने नागराज को अपने पलंग की चादर में काय कृष्ण स समय सोहनवास की कोई कमी से से उतर कर नीचे अपने पलंग का हुआ और न को
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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