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________________ सम्यक्त्व प्राप्ति ६३ सम्यक्त्व धारण करने के लिये यह आवश्यक है कि जिनेन्द्र भगवान द्वारा बतलाए हुए तत्वों में पूर्ण श्रद्धान किया जावे। यही सम्यक्त्व है। यदि तुम चाहो तो इसे ग्रहण कर सकते हो। . ___ प्राचार्य महाराज के इस प्रकार उपदेश देकर चुप हो जाने पर सोहनलाल जी का हृदय हर्प से गद्गद हो गया। उन्होंने आचार्य महाराज के चरण पकड़ कर कहा___"गुरुदेव ! मै आपकी कृपा से संसार रूपी समुद्र से पार करने के प्रधान साधन इस सम्यक्त्व को अब बहुत कुछ समझ गया । अब आप मुझे सम्यमत्व ग्रहण करा दे।" इस पर आचार्य महाराज ने उत्तर दिया, "वत्स ! सम्यक्त्व को व्रतों के समान ग्रहण नहीं कराया ' जाता। यह तो हृदय के अन्दर स्वयमेव ही उत्पन्न होता है। तो भी तुम चाहो तो हमारे समक्ष मिथ्यात्व का पूर्णतया त्याग करने का व्रत ले सकते हो। वास्तव में सिथ्यात्व का त्याग करना ही सम्यक्त्व का ग्रहण करना है।" इस पर सोहनलाल जी बोले___"महाराज ! मैं आज आपके चरणों की साक्षीपूर्वक प्रतिज्ञा करता हूं कि कुदेव, कुगुरु तथा कुधर्म का कभी भी सेवन नहीं - करूगा और सदा वीतराग सर्वज्ञ देव जिनेन्द्र भगवान् , आप सरीखे सच्चे गुरु तथा जैन धर्म मे ही श्रद्धा रक्तूंगा।" सोहनलाल जी के इस प्रकार सम्यक्त्व ग्रहण करने पर गुरु , महाराज ने उनकी पीठ थपथपा कर उन्हे शाबाशी देकर विदा कर दिया।
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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