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________________ ८२ प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी करती हूं और छोटी बहू के नाम लगवा देती हूं। भाई ! यदि तू इस समय मेरी इज्जत को बचा देगा तो मैं जीवन भर तेरे उपकार को नहीं भूलूगी।। इस पर सोहनलाल जी ने उस से कहा सोहनलाल-यदि तू यह प्रतिज्ञा करे कि मैं भविष्य में कभी भी चोरी नहीं करूंगी और इस प्रतिज्ञा का सच्चाई से पालन करेगी तो मैं तेरी इज्जत बचा लूगा। इस पर स्त्री ने उत्तर दिया भासी-'मैं अपने पुत्र, भाई तथा पति के शिर की शपथपूर्वक यह प्रतिज्ञा करती हूँ कि आगे मैं कभी चोरी नहीं करूंगी।" सोहनलाल-अच्छा यह याद रखना कि जिस दिन भी तू इस प्रतिज्ञा को तोड़ेगी मैं उसी दिन तेरा भण्डा फोड़ कर दूंगा। भाभी-हां, यह मुझे स्वीकार है। यदि मैं अपने इस वचन से फिर जाऊं तो तुम मुझे चाहे जितनी बदनाम कर लेना। अच्छा, अब तू मुझे यह बता कि मैं हार तथा चोरी की अन्य वस्तुओं का क्या करू? सोहनलाल-इन सब वस्तुओं को तू आज ही उस बर्तन में रख देना, जिस मे आटा रखा जाता है। भाभी-बहुत अच्छा। यह कह कर उस स्त्री ने वह सब वस्तुएं लाकर आटे के । बर्तन मे रख दी। इस के पश्चात् सोहनलाल ने घर की सब स्त्रियों को बुला कर कहा ___"मुझे पता चला है कि आज से तीन दिन के अन्दर तुमको वह सब वस्तुएं मिल जावेगी, जो चोरी गई है और न कभी भविष्य मे तुम्हारे घर मे चोरी होगी। किन्तु चाची जी! एक काम आप को भी अवश्य करना होगा। आप को दोनों
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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