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________________ अद्भुत न्याय "सब घर वाले उन पर श्रद्धा करने लगे थे। जिसने हार चुराया था अब उसको भय होगया कि कहीं ऐसा न हो कि मेरी चोरी का पता सब को लग जावे । उसने एकांत में जाकर तिनके को नापा, किन्तु घबराहट के कारण वह उसको ठीक २ न नाप सकी । वास्तव में किसी ने ठीक ही कहा है कि ___ 'पापी को उप्तका पाप ही मार डालता है।' ___ उसने भय के कारण उस तिनके में से एक अंगुल तिनका तोड़ दिया। अब वह मन में सोचने लगी कि 'अब मेरी चोरी का किसी को भी पता न लगेगा।' थोड़ी देर बाद सोहनलाल जी ने घर वालों से कहा "अच्छा, अब सब के सब तिनके मुझे वापिस कर दिये जावे।" __ सबके तिनके मिल जाने पर सोहनलाल जी को यह समझते तनिक भी देर न लगी कि वास्तविक अपराधी कौन है। उन्होंने उसको एकांत में ले जाकर उससे कहा-- सोहनलाल-भाभी ! यह बतला कि तूने ऐसा नीच काम क्यों किया ? यह निश्चय है कि आज तक जितनी भी चोरियां इस घर मे हुई हैं वह भी सब तूने ही की हैं। जरा मैं भी तो सुनू कि ऐसा करने से तुझे क्या सुख मिलता है ? ..सोहनलाल जी के मुख से यह वचन सुनकर उस स्त्री का - मुख एक दम उतर गया। वह बहुत घबरा गई। अव तो उसे चोरी करने का वास्तव में पश्चात्ताप होने लगा। वह रोते हुए सोहनलाल जी से बोली भाभी--मेरी सास छोटी बहू के साथ अत्यन्त प्रेम करती है और मेरे साथ नहीं करती। बस इसी डाह के मारे छोटी बहू: को बदनाम करने के लिये, मैं चोरियां किया
SR No.010739
Book TitleSohanlalji Pradhanacharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherSohanlal Jain Granthmala
Publication Year1954
Total Pages473
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size18 MB
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