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________________ जैन पूजाँजलि नए वर्ष का प्रथम दिवस ही नूतन दिन कहलाता है । पर नूतन दिन वही कि जिस दिन तत्व बोध हो जाता है ।। श्री कुन्थुनाथ जी नगर हस्तिनापुर के राजा सूर्य सेन के प्रिय नन्दन । राजदुलारे श्रीमती देवी रानी के सुत वन्दन ।।१।। कामदेव तेरहवे तीर्थकर मतरहवे कुन्थु महान । छठे चक्रवर्ती बन • पाई षट खण्डो पर विजय प्रधान २।। भोतिक वैभव त्याग मुनीश्वर बन स्वरूप में लीन हुए । भाव शुभाशुभ का अभाव कर शुक्ल ध्यान तल्लीन हुए ॥३।। ध्यान अग्नि से कर्म दग्ध कर केवलज्ञान स्वरूप हुए । सिद्ध हुए सम्मेद शिखर से तीन लोक के भूप हुए ॥४।। ॐ ही श्री कुन्थुनाथ जिनेन्द्राय गर्भजन्मतपज्ञाननिर्वाण पचकल्याणप्राप्ताय अयं नि । श्री अरनाथ जी नगर हस्तिनापुर के पति नृपराज सुदर्शन पिता महान । माता मित्रा देवी की आखो के तारे हे भगवान ।।१।। कामदेव चौदहवे मप्तम चक्री श्री अरनाथ जिनेश । अप्टादशम तीर्थकर जिन परम पूज्य जिनराज महेश ।।२।। छहखडो पर शासन करते करते जग अनित्य पाया । भव तन भोगो से विरक्तिमय उर वैराग्य उमड आया ।।3।। पत्र महाव्रत धारण करके निज स्वभाव मे हुए मगन । पा केवल्य श्री सम्मेद शिखर से पाया मुक्ति गगन ।।४।। ॐ ही श्री अरनाथ जिनेन्द्राय गर्भ जन्मतपज्ञाननिर्वाण पचकल्याण प्राप्ताय अर्घ्य नि । जयमाला शान्ति कथ अरनाथ जिनेश्वर के चरणो मे नित वन्दन । विमल ज्ञान आशीर्वाद दो काट सकू मै भव बन्धन ॥१॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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