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________________ - जैन पूजांजलि ज्ञान शान में जब सुस्विर होतब होता है सम्यक ज्ञान । सतत पावना सुद्धातम की करते करते केवल ज्ञान ।। नन्दीश्वर के बावन जिन चैत्यालय वन्द हर्षा ऊँ। अष्टमीप मनोरम जिन प्रतिमायें पूर्ण सुख पाऊँ १॥ *ही श्री नन्दीश्वर दीपे पूर्वपश्चिमोतर दक्षिणदिशासुदिपचाराजिनालयस्थ जिनमतिमा यो जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जल नि. ।। क्षमा भाव का शुचिमय चन्दन उर अन्तर में भर लाऊँ। क्रोध कषाय नष्ट करके मैं शांति सिंधु प्रभुबन जाऊँ नंदी. ॥२॥ * ही श्री नन्दीश्वरद्वीपे दि पंचाग्जिनालयस्थ जिनप्रतिमा यो भवताप विनाशनाय बन्दनं नि । मार्दव भाव परम उपकारी भाव पूर्ण अक्षत लाऊँ। मान कषाय नष्ट करके मैं शुद्धातम के गुण गाऊँ नदी ॥३॥ ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे दि पचाशजिनालयस्थ जिनप्रतिमा यो अक्षयपद प्राप्ताय अक्षत नि । शुद्ध आर्जव भाव पुष्प से सजा हदय को मैं आऊँ। सर्वनाश माया कषाय का करूँ सरलता को पाऊँ निंदी ।।४।। ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे द्वि पचाशज्जिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो कामबाण विध्वसनाय पुष्पं नि । सत्य शौच मय भाव भक्तिनैवेद्य हृदय मे भर लाऊँ। लोभ कषाय नाश करने को सन्तोषामृत पी जाऊँ ।नंदी ।।५।। ॐ ही श्री नन्दीश्वरद्वीपे दि पचाराजिनालयस्थ जिनप्रतिमा यो सुधारोग विनाशनाय नैवेद्य नि । द्रव्य भाव सयम तप ज्योति जगा आतम मे रम जाऊँ । मैं अनादि अज्ञान नाश कर सम्यवज्ञान रत्न पाऊँ ।। नदी ।।६।। ॐ ही श्री नन्दीश्वरद्वीपे द्वि पचाशजिनालयस्थ जिनप्रतिमाभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीप नि । त्याग भाव आकिंचन पाऊँ शुद्ध स्वभाव धूप लाऊँ। पर विभाव परणति को क्षयकर निजपरणति वैभव पाऊँ नदी. ॥७॥ ॐ ह्रीं श्री नन्दीश्वरद्वीपे द्वि पंचाशजिनालयस्थ जिनप्रतिमाम्यो अष्टकर्म विध्वशनाय धूप नि ।
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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