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________________ श्री नन्दीरवर तीपासष्टान्हिका ) पूजन पर का मामय लेने वाला मर्कनिमोदादिक जाता।। निज का आश्रय लेने वाला महामोष फल को पाता ।। अनादिनिधन पर्व पूजायें जैन आगम में नैमितिक पर्व पूजनों का विशेष महत्व है । ये पांचो पर्व अष्टान्हिका, सोलहकारण-पचपेरु दशलक्षण एव रत्नत्रय अनादि निधन पर्व हैं तथा वर्ष में तीन बार आते हैं । अष्टान्हिका पर्व कार्तिक, फाल्गुन एवं आषाढ माह में आते है। अष्टान्हिका पर्व ने आठ दिनो तक इन्द्रादिक सपरिवार आठवे नदीश्वर द्वीप मे जाकर अकृत्रिम जिन चैत्यालयो में स्थित जिनेन्द्र देव की अहर्निश अति उल्लास पूर्वक पूजन भक्ति करते हैं। अन्य चार पर्व माघ, चैत्र एव भाद्र माह में आते हैं। इसमे से भाद्र पद में पड़ने वाले इन पर्यों को विशेष उल्लास पूर्वक मनाने की परम्परा है. ये धर्म आराधना के पर्व है और प्रत्येक मुमुक्षु को स्वपर कल्याणार्थ की भावना से वर्ष में पड़ने वाले तीनो बार के पवों को अति उल्लास पूर्वक मनाया जाना श्रेयस्कर है। श्री नन्दीश्वर द्वीप [अष्टान्हिका] पूजन अष्टम द्वीप श्री नन्दीश्वर आगम में वर्णित पावन । चार दिशा मे तेरह-तेरह जिन चैत्यालय हैं बावन ।। एक-एक मे बिम्ब एक सौ आठ रतनमय हैं अति भव्य । प्रातिहार्य हैं अष्ट मनोहर आठ-आठ है मंगल द्रव्य ।। पांच सहस्त्र अरु छ सौ सोलह प्रतिमाओ को करूंप्रणाम । धनुष पाच सौ फ्यासन अरिहन्त देव मुद्रा अभिराम ।। अष्टान्हिका पर्व मे इन्द्रादिक सुर जा करते पूजन । भाव सहित जिन प्रतिमा दर्शन से होता सम्यक्दर्शन ।। ही श्री नन्दीश्वर द्रोपे द्वि पंचाश जिनालयस्थ जिन प्रतिमासमूह अब अबतर अवतर सौषट, *ही श्री नन्दीश्वर दीपे दिपचाश जिनालयस्थ जिन प्रतिमा समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ 13, ही श्री नन्दीश्वर द्वीपे हि पंचाश जिनालयस्थ जिन प्रतिमा समूह अब मम सन्निहितो अवमव वषट् समकित जल की पावन धारा निज उर अन्तर में लाऊँ। मिथ्याप्रम की पल हटाऊँ निज स्वरूप को चमका॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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