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________________ जैन पूजान्जलि पुण्यमयी शुभ पावों से होता है देव आयु का बष । मिश्रित भाव शुभाशुभ से होता है मनुज आयु का बष ।। ॐ ह्री श्री विद्यमान बीसतीर्थकराम अक्षयपद प्राप्ताय अक्षतं नि. । शुभ शील के पुष्प मनोहर लेकर चरणो मे आऊँ। काम शत्रु का दर्प नशाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ । सीमं ।।४।। ॐ ह्रीं श्री विद्यमान बीसतीर्थकराय कामबाण विध्वंसनाय पुष्प नि । परम शुद्ध नैवेद्य भाव उर लेकर चरणों मे आऊँ। क्षुधा रोग का मूल मिटाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ सीमं ।।५।। ॐ ह्रीं श्री विद्यमान बीसतीर्थकराय भुधारोगविनाशनाय नैवेचं नि । जगमग अंतर दीप प्रज्ज्वलित लेकर चरणों में आऊँ। मोह तिमिर अज्ञान हटाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ सीम. ।।६।। ॐ ह्री श्री विद्यमान बीसतीर्थकराय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि कर्म प्रकृतियों का ईधन अब लेकर चरणो मे आऊँ। ध्यान अग्नि मे इसे जलाने श्री जिनवर के गुण गाऊँ।सीम।।७।। ॐ ही श्री विद्यमान बीसतीर्थकराय अष्टकर्म दहनाय धूप नि । निर्मल सरस विशद्ध भाव फल लेकर चरणो मे आऊँ। परममोक्ष फल शिवसुख पाने श्रीजिनवर के गुण गाऊँ ।।सीम ।।८।। ॐ ही श्री विद्यमान बीसतीर्थकराय मोक्षफल प्राप्ताय फल नि । अर्घ पुज वैराग्य भाव का लेकर चरणो मे आऊँ। निज अनर्घ पदवी पाने को श्री जिनवर के गण गाऊँ।सीम ।।९।। ॐ ह्री श्री विद्यमान बीसतीर्थकराय अनर्घ्य पद प्राप्ताय अयं नि । जयमाला मध्य लोक मे असख्यात सागर अरु असख्यात है द्वीप। जम्बूद्वीप धातकीखण्ड अरु पुष्करार्ध यह ढाई द्वीप ।।१।। ढाई द्वीप मे पचमेरु हैं तीनो लोको मे अति विख्यात। मेरु सुदर्शन, विजय, अचल, मदर विद्युन्माली विख्यात ।।२।। एक एक मे हैं बत्तीस विदेह क्षेत्र अतिशय सुन्दर। एक शतक अरु साठ क्षेत्र है, चौथा काल जहाँ सुखकर ॥३॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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