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________________ श्री विद्यमान बीसतीर्थकर पूजन अरे विकल्पातीत अवस्था निर्विकल्प होकर पाले । निज अतर में भीतर जाकर पूर्ण अतीन्द्रिय सुख पाले ।। देव शास्त्र गुरु के वचन भाव सहित उरधार । मन वच तन जो पूजते वे होते भव पार ।। इत्याशीर्वाद जाप्य मत्र-ॐ हो श्री देवशास्त्र गुरुम्यो नम श्री विद्यमान बीसतीर्थकर पूजन सीमथर, युगमधर, बाहु, सुबाहु, सुजात स्वयप्रभु देव । ऋषभानन, अनन्तवीर्य, सौरीप्रभु विशाल कोर्ति सुदेव ।। श्री वज्रधर, चन्द्रानन प्रभु चन्द्रबाहु, भुजगम ईश । जयति ईश्वर जयतिनेम प्रभु वीरसेन महाभद्र महोश ।। पूज्य देवयश अजितवीर्य जिन बीस जिनेश्वर परम महान । विचरण करते है विदेह मे शाश्वत तीर्थंकर भगवान ।। नहीं शक्ति जाने की स्वामी यहीं वन्दना करूँ प्रभो । स्तुति पूजन अर्चन करके शुद्ध भाव उर भरूं प्रभो ।। ॐ ही श्री विदेहक्षेत्रस्थित विद्यमानबीसतीर्थंकर जिन समूह अत्र अवतर अवतर सवौषट ॐ ह्री श्री विदेहक्षेत्रस्थित विद्यमानबीसतीर्थकर जिन समूह अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ ॐ ह्री श्री विदेहक्षेत्रस्थित विद्यमान बीसतीर्थकर जिन समूह अत्र मम अनिहितो भव भव वषट् । निर्मल सरिता का प्रासुक जल लेकर चरणो मे आऊँ। जन्म जरादिक क्षय करने को श्री जिनवर के गुण गाऊँ ।। सीमधर, युगमधर आदिक, अजितवीर्य को नित ध्याऊँ। विद्यमान बीसों तीर्थंकर की पूजन कर हर्षाऊँ।।१।। ॐ ही श्री विद्यमानबीसतीर्थकराय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल नि । शीतल चन्दन दाह निकन्दन लेकर चरणो मे आऊँ। भव सन्ताप दाह हरने को श्री जिनवर के गुण गाऊँ ।सीम ।।२।। ॐ ही श्री विद्यमान बीसतीर्थकराय भवताप विनाशनाय चदन नि । स्वच्छ अखण्डित उज्जवल तदुल लेकर चरणो मे आऊँ। अनुपम अक्षय पद पाने को श्री जिनवर के गुण गाऊँ ।।सीम.॥३॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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