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________________ १८९ - श्री सुमतिनाव लिनपूजन सीना राय को दुखमय समक्षा मंदस को सुखमय जाला । ......पाप पुण्य दोनों बंधन बोवराम का कमान ने माना ।। चैत्र शुक्ल एकादशी को प्रभु भारत भू पर आए । नृपति मेघ के आंगन में देवी ने मंगल माए ।। ऐरावत पर सुरपति तुमको गोदी में ले हाए । जय जय सुमतिनाथ जन्मोत्सव पर जग ने बहुसुख पाए।।२।। ॐ हीं चैत्रशुक्लएकादश्या जन्मकल्याण प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय अयं नि. शुभ बैशाख शुक्ल नवमी को जगा हृदय वैराग्य महान । लौकातिक ब्रम्हर्षि सुरो ने किया स्वर्ग से आ गुणगान ।। दीक्षित हुए सहेतुक वन मे तरु प्रियंगु के नीचे आन । जय जय सुमतिनाथ तीर्थकर हुआ आपका तप कल्याण ॥३॥ ॐ ही बैशाखशुक्लनवम्या तपकल्याण प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेंद्राय अयं नि । बीसवर्ष छदमस्थ रहे प्रभु धारा प्रतिमा योग प्रधान । चैत सुदी ग्यारस को पाया शुक्ल ध्यान घर केवलज्ञान | समवशरण की अनुपम रचना हुई हुआ उपदेश महान । जय जय समतिनाथ तीर्थकर अद्भुत हुआ ज्ञानकल्याण ।।४।। ॐ ह्री चैत्रसुदीएकादश्या ज्ञान कल्याण प्राप्ताय श्री सुमतिनाथ जिनेन्द्राय अयं नि । चैत्र शुक्ल एकादशी को अष्ट कर्म का कर अवसान । अविचल कूट शिखर सम्मेदाचल से पाया पद निर्वाण ॥ मुक्ति धरा तक गूज उठे देवो के सुन्दर मजुल गान । जय जय सुपतिनाथ परमेश्वर अनुपम हुआ मोक्षकल्याण ।।५।। ॐ ही चैत्रशुक्लएकादश्या मोक्ष कल्याण प्राप्ताय श्री सुमतिनायजिनेंद्राय अयं नि। जयमाला सुमतिनाथ प्रभु मुझे सुमति दो उर में निर्मल भाव जगे। धर्म भाव से ही मेरी नैया भव सागर पार लगे ॥१॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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