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________________ - जैन पूजांजलि सयम के बिन भव से प्राणी हो सकता है मुक्त नहीं । संयम बिन कैवल्य लक्ष्मी से हो सकता युक्त नहीं ।। उज्जयनी नगरी के रूप श्रीवर्मा के मन्त्री थे चार । बलि, प्रहलाद, नमुचि वृहस्पति चारों अभिमानी सविकार ॥२॥ जब अकम्पनाचार्य सघ मुनियों का नगरी में आया । सात शतक मुनि के दर्शन कर नप श्री वर्मा हर्षाया ॥३॥ सब मुनि मौन ध्यान मे रत, लख बलि आदिक ने निंदा की । कहा कि मुनि सब मूर्ख इसी से नहीं तत्व की चर्चा की । किन्तु लौटते समय मार्ग मे, श्रुतसागर मुनि दिखलाये । वाद विवाद किया श्री मुनि से हारे, जीत नहीं पाये ॥५॥ अपमानित होकर निशि में मुनि पर प्रहार करने आये । खड्ग उठाते ही कीलित हो गये हृदय मे पछताये ।।६।। प्रात होते ही राजा ने आकर मुनि को किया नमन । देश निकाला दिया मन्त्रियों को तब राजा ने तत्क्षण ॥७॥ चारों मन्त्री अपमानित हो पहुचे नगर हस्तिनापुर । राजा पदमराय को अपनी सेवाओ से प्रसन्न कर ॥८॥ मुह मांगा वरदान नृपति ने बलि को दिया तभी तत्पर । जब चाहूगा तब ले लूगा, बलि ने कहा नम होकर ॥९॥ फिर अकम्पनावार्य सात सौ मुनियो सहित नगर आये । बलि के मन मे मुनियों की हत्या के भाव उदय आये ॥१०॥ कुटिल चाल चल बलि ने नृप से आठ दिवस काराज्यलिया ।। भीषण अग्नि जलाई चारों ओर द्वष से कार्य किया ॥११॥ हाहाकार मचा जगती में, मुनि स्व ध्यान में लीन हुए । नश्वर देह भिन्न चेतन से, यह विचार निज लीन हुए ॥१२॥ यह नरमेघ यज्ञ रच बलि ने किया दान का ढोंगविचित्र । दान किमिच्छक देता था, पर मन था अतिहिंसक अपवित्र ॥१३॥ पाराय नृप के लघु भाई, विष्णुकुमार महा मुनि । वात्सल्य का भाव जगा, मुनियों पर संकट का सुनकर ।।१४॥
SR No.010738
Book TitleJain Punjanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya
PublisherRupchandra Sushilabai Digambar Jain Granthmala
Publication Year1992
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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